
प्रतिलिपिरोटी सेंकते ही चंपा बुदबुदा उठी बीस हजारी यही तो नाम था उसका।वह थाली मे दो रोटी अनमने से टुंगते अतीत के पन्ने उलटने लगी कितने अरमानो को सहेजे वह पति के साथ ससुराल राजस्थान के गावँ में आई थी।एक छोटा सा मड़ैया,मिट्टी के दलान,एक जोड़ी बकरी यही तो ससुराल का धरोहर जिसे कितना संभाल कर रखती थी। हर दिन की तरह वह उस दिन भी हाथ मुँह धोकर चूल्हे में आंच जलाने लगी खटिया पर सोये सोये उसका निखट्टू पति बोला -आंच मत जला चल ईट के भट्टी पर ईट बनाने।वह हैरत होकर पूछी -ईट बनाने! वह बोली ना ना मुझसे ना होगा मैं खेत ...
रिपोर्ट की समस्या
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