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बीस हजारी

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रोटी सेंकते ही चंपा बुदबुदा उठी बीस हजारी यही तो नाम था उसका।वह थाली मे दो रोटी अनमने से टुंगते अतीत के पन्ने उलटने लगी कितने अरमानो को सहेजे वह पति के साथ ससुराल राजस्थान के गावँ में आई थी।एक छोटा सा मड़ैया,मिट्टी के दलान,एक जोड़ी बकरी यही तो ससुराल का धरोहर जिसे कितना संभाल कर रखती थी। हर दिन की तरह वह उस दिन भी हाथ मुँह धोकर चूल्हे में आंच जलाने लगी खटिया पर सोये सोये उसका निखट्टू पति बोला -आंच मत जला चल ईट के भट्टी पर ईट बनाने।वह हैरत होकर पूछी -ईट बनाने! वह बोली ना ना मुझसे ना होगा मैं खेत ...

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लेखक के बारे में

ना शोहरतों की ख्वाहिशें ना नफरतों की गुंजाइशें ना कोई गिला हैं ना कोई शिकवा बस जिंदगी तुझे जीने की आरज़ू है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    19 अगस्त 2017
    जब हद से बढ़ जाए सितम.. तो उठाना ही पड़ते हैं ऐसे कदम.......
  • author
    Rahul Shrivastava
    21 जून 2017
    wow
  • author
    Veena Jha
    15 मई 2017
    सही कदम...
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    19 अगस्त 2017
    जब हद से बढ़ जाए सितम.. तो उठाना ही पड़ते हैं ऐसे कदम.......
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    Rahul Shrivastava
    21 जून 2017
    wow
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    Veena Jha
    15 मई 2017
    सही कदम...