pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

बहुत जल्दी में थे तुम

2

बिना अलविदा कहे चल दिये थे तुम , लेकिन कहां सोचा था , की आखिरी अलविदा भी नहीं कह पाऊंगा , शमशान में चाह कर भी , आखरी बार देखने नहीं आ पाया , बहते समय को रोक न पाया , क्योंकि लौकडौउन का फासला हमारे ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Samrendra Singh
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है