बहुत दिन हो गए, लिखी नहीं कोई कविता, कुछ सोच भी ना पाया, कोई भाव भी नहीं आये, कागज हर बार कोरा रहा, सुबह से शाम... फिर रात, चलता रहा यहीं अनवरत, उबा था मन मेरा जो, एकाएक जाग उठे, उठाया कलम सोचा, ...
बहुत दिन हो गए, लिखी नहीं कोई कविता, कुछ सोच भी ना पाया, कोई भाव भी नहीं आये, कागज हर बार कोरा रहा, सुबह से शाम... फिर रात, चलता रहा यहीं अनवरत, उबा था मन मेरा जो, एकाएक जाग उठे, उठाया कलम सोचा, ...