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बहुत बोलने लगी हूं मैं

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बहुत बोलने लगी हूं मैं गाह-बिगाहे अंगिनत राज खोलने लगी हूं मैं बहुत बोलने लगी हूं मैं जो रहती थी कभी गुमसुम सी जो रहती थी कभी गुमसुम सी उसके इतर....! अब बिंदास चुलबुली सी डोलने लगी हूं मैं बहुत बोलने ...

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vasudha maurya

khwabo me rhne ki aadat si hai...

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