मखलूत है वो हवा के मानिंद मेरे वजूद में,
लेकिन उसको भी मेरा भगवान ना समझा जाए;
दस्तक ना दी किसी ने मेरी रूह पर उसके बाद,
इसको 'आज़ाद' के कुफ़्र का एलान ना समझा जाए;
सारांश
मखलूत है वो हवा के मानिंद मेरे वजूद में,
लेकिन उसको भी मेरा भगवान ना समझा जाए;
दस्तक ना दी किसी ने मेरी रूह पर उसके बाद,
इसको 'आज़ाद' के कुफ़्र का एलान ना समझा जाए;
समीक्षा
आपकी रेटिंग
रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
आपकी रेटिंग
रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
आपकी रचना शेयर करें
बधाई हो! बदला हुआ दौर प्रकाशित हो चुकी है।. अपने दोस्तों को इस खुशी में शामिल करे और उनकी राय जाने।