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बढ़े चलो बढ़े चलो – सोहनलाल द्विवेदी

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न हाथ एक शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो न अन्न वीर वस्त्र हो हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। रहे समक्ष हिम-शिखर तुम्हारा प्रण उठे निखर भले ही जाए जन बिखर रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े ...

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MERI KAVITA

poet, Writer,mera bharat mahan hai,mere bihar meri jaan mere pyare vatan🇮🇳

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