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"बड़े होने का दंड" (एक व्यंग्यात्मक आध्यात्मिक गाथा)

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"बड़े होने का दंड" (एक व्यंग्यात्मक आध्यात्मिक गाथा) मैं घर का बड़ा हूँ बेटा , कर्मों की गठरी हूँ ढोता । कंधों पे कुल की नाव लिए, सपनों की राख हूँ बोता॥ मैं नहीं मनुष्य मात्र, मैं एक कुल का हूँ ...

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