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बदलते हालात मंजूषा

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दरख्तों को बढ़ने की जगह नहीं बची   आसमानों तक पहुँचने की ललक नहीं बची,            दूर-दूर तक सिर्फ़ ईट पत्थर छाये है            सांस लेने के लिए हवा तक नहीं बची। नज़ारो को भी नज़ारे अब नज़र आते नहीं ...