नीला था कभी जो गगन , आज वो झूठी कहानी सा लगा। हर कोना ढक गया रुई के पर्दे से, बादल चुपचाप कुछ कहने लगा। कभी फिसलते फुहार बनकर, कभी गरजते गुस्से की तर्ज पर। कभी उदासी में डूबे, सन्नाटे से, कभी ...

प्रतिलिपिनीला था कभी जो गगन , आज वो झूठी कहानी सा लगा। हर कोना ढक गया रुई के पर्दे से, बादल चुपचाप कुछ कहने लगा। कभी फिसलते फुहार बनकर, कभी गरजते गुस्से की तर्ज पर। कभी उदासी में डूबे, सन्नाटे से, कभी ...