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बाँझ

4.2
18667

राजकुमारी के पाँव आज जमीन पर धरे नहीं धरा रहे थे । क्या करे ...किधर जाए ।..कभी सोहर गानेवालियों पर रूपए न्योछावर कर रही थी। कभी महाराज जी को नमक, हरदी दे रही थी। इधर से मुहबोली छोटकी ननदिया उससे हँसी ...

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लेखक के बारे में
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स्वयम्बरा

एक यायावर...यात्रा, भटकन जिसकी नियति है ....

समीक्षा
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  • author
    Awadhesh Arya
    08 जुलै 2018
    कहानी छोटी है पर हृदय विदारक और मार्मिक है। इंसानियत का एक आईना दिखता है इस कहानी में जिसमे उल्टी और सीधी दोनों तरह की छवियां दिखती हैं।
  • author
    Shaline Gupta
    10 ऑगस्ट 2019
    कहानी मेरे मन का आईना हैं।इस प्रकार से मुझे भी अपनी पीड़ा याद आ गई।जब मुझे देखकर मेरी देवरानी की बेटी छुपा दी थी।
  • author
    Anupma Tiwari
    03 फेब्रुवारी 2019
    आपने तो मुझे 5 साल पीछे भेज दिया। ऐसे उपनामों से मुझे भी बहुत नवाजा गया था। समय बदलता है। इतजार कीजिये
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    Awadhesh Arya
    08 जुलै 2018
    कहानी छोटी है पर हृदय विदारक और मार्मिक है। इंसानियत का एक आईना दिखता है इस कहानी में जिसमे उल्टी और सीधी दोनों तरह की छवियां दिखती हैं।
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    Shaline Gupta
    10 ऑगस्ट 2019
    कहानी मेरे मन का आईना हैं।इस प्रकार से मुझे भी अपनी पीड़ा याद आ गई।जब मुझे देखकर मेरी देवरानी की बेटी छुपा दी थी।
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    Anupma Tiwari
    03 फेब्रुवारी 2019
    आपने तो मुझे 5 साल पीछे भेज दिया। ऐसे उपनामों से मुझे भी बहुत नवाजा गया था। समय बदलता है। इतजार कीजिये