pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

आत्महत्या के विरुद्ध

237
4.4

ग़ालिब की ज़िन्दगी की गांठें खोलते हुए मैंने पाया कि जिंदगी की गाँठ और कड़ी हो गई है . मैंने कहा - “ मैं एक शर्म में जीता हूँ एक शर्म को जीता हूँ, जी ....ता (१) नहीं हूँ मैं हारा हूँ / हारता ही रहा ...