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अठारह पापों की दुकान

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शहर के बीचोंबीच एक छोटी सी दुकान थी – “मन की दुकान”। यहाँ हर दिन तरह-तरह के लोग आते-जाते रहते थे। इस दुकान का मालिक था – अर्जुन। अर्जुन ने एक बोर्ड लगाया था – “यहाँ आत्मा को हल्का करने का सामान ...

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लेखक के बारे में
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Anirudh Singh Tomar

कुछ वर्षों तक सरस्वती जी की सेवा करने क पश्चात आप पुनः ग्वालियर चले गए व इंजीनियर क पद पर कार्यरत रहे किन्तु मन में बसा लेखक हमेश जिन्दा रहा तो अब हाज़िर है अपनी कुछ कृतियां लेकर मध्यप्रदेश में आयोजित युवा हिंदी साहित्य सम्मलेन में सभापति रहे एवं सन२०१७ में युवा लेखक का ख़िताब जीता विधाएँ : निबंध, कविता, नाटक, एकांकी।

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