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अपना शहर जीती हूँ

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बरसों हो गए शहर को छोड़े पूराने तोड़ नये घोंसले जोड़े सब कुछ नये सिरे से बिठाया आहिस्ता आहिस्ता मन भी जमाया नये में ढल दिन रैन समाया । पूरानी उतरन फेंक के हमने उजले नये गीलाफ चढ़ाये है पर अंदर का मन ...

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Monica Gera
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