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अल्फ़ाज़

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महफ़िल में आकर नज़रे मिलाकर, वो मुस्कुराकर तो आज चले गए......... और इधर हम अल्फ़ाज़ ही भूल गए, नज़्म-ओ-ग़ज़ल को पढ़ते-पढ़ते.........    -मनीष कुमार सैनी............✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 ...

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MANISH SAINI

कलम और कागज़ के साथ अपना समय बेकार करता हूं..... मैं तो शायर हूं जनाब, शब्दों का व्यापार करता हूं.....

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