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अक्स

3.2
504

लकीर दर लकीर.. बनती हुई एक तस्वीर। धुंदले पड़तेे हुए बहुत से अक्स... और समय की रेत पर उभरती हुई एक नयी इबारत! ... चीज़ें वहीँ रह जाती हैं... बस उनके रूप बदल जाते है.... ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Hardeep Garg
    27 फ़रवरी 2022
    Nice
  • author
    Sumedha Prakash
    02 अक्टूबर 2018
    वाह
  • author
    My Digital Diary
    04 सितम्बर 2017
    very nice
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Hardeep Garg
    27 फ़रवरी 2022
    Nice
  • author
    Sumedha Prakash
    02 अक्टूबर 2018
    वाह
  • author
    My Digital Diary
    04 सितम्बर 2017
    very nice