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अक्स

3.3
524

लकीर दर लकीर.. बनती हुई एक तस्वीर। धुंदले पड़तेे हुए बहुत से अक्स... और समय की रेत पर उभरती हुई एक नयी इबारत! ... चीज़ें वहीँ रह जाती हैं... बस उनके रूप बदल जाते है.... ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    S Vishnoi
    27 நவம்பர் 2023
    अच्छी रचना कृपया मेरी रचनाओं को भी पढें और प्रोत्साहित करते हुए फाॅलो करें
  • author
    Hardeep Garg
    27 பிப்ரவரி 2022
    Nice
  • author
    My Digital Diary
    04 செப்டம்பர் 2017
    very nice
  • author
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  • author
    S Vishnoi
    27 நவம்பர் 2023
    अच्छी रचना कृपया मेरी रचनाओं को भी पढें और प्रोत्साहित करते हुए फाॅलो करें
  • author
    Hardeep Garg
    27 பிப்ரவரி 2022
    Nice
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    My Digital Diary
    04 செப்டம்பர் 2017
    very nice