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आखरी ख़त

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3.8

यूँ तो जरूरी नहीं था लिखना इतने सालों बाद तुम्हें कुछ भी पर जब वक्त होता है कम गैर जरूरी लगने वाली बातें हो जाती हैं जरूरी याद आ जाता है बहुत कुछ जिनको लिखना होता है उतना ही मुश्किल जितना मुश्किल ...