ऐसी भी सुबह होती है एक दिन जब अकेली औरत फूट फूट कर रोना चाहती है। रोना एक गुबार की तरह, गले में अटक जाता है और वह सुबह सुबह किशोरी अमोनकर का राग भैरवी लगा देती है, उस आलाप को अपने भीतर समोते वह रुलाई ...
ऐसी भी सुबह होती है एक दिन जब अकेली औरत फूट फूट कर रोना चाहती है। रोना एक गुबार की तरह, गले में अटक जाता है और वह सुबह सुबह किशोरी अमोनकर का राग भैरवी लगा देती है, उस आलाप को अपने भीतर समोते वह रुलाई ...