अकेली औरत खुद से खुद को छिपाती है। होंठों के बीच कैद पड़ी हँसी को खींचकर जबरन हँसती है और हँसी बीच रास्ते ही टूट जाती है ...... अकेली औरत का हँसना, नहीं सुहाता लोगों को। कितनी बेहया है यह औरत सिर पर ...

प्रतिलिपिअकेली औरत खुद से खुद को छिपाती है। होंठों के बीच कैद पड़ी हँसी को खींचकर जबरन हँसती है और हँसी बीच रास्ते ही टूट जाती है ...... अकेली औरत का हँसना, नहीं सुहाता लोगों को। कितनी बेहया है यह औरत सिर पर ...