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"अगर तुम FM radio होती "

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"अगर तुम FM radio होती " अगर तुम FM radio होती, तो हर शाम तुम्हारी आवाज़ मेरे सन्नाटों में गूंजती, कभी हँसी, कभी ग़ज़ल, कभी वो खामोशियाँ जो सिर्फ़ दिल समझ पाता। तुम बोलती जाती… और मैं सुनता जाता, हर ...

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R Aktar

कुछ जज़्बात ऐसे होते हैं जो अल्फाज़ नहीं ढूंढते, बस किसी सन्नाटे में उतर आते हैं। ये कविता उन्हीं सन्नाटों की आवाज़ है—रौशनी की कलम से।

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