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अधुरे से लफज्ज

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दिया लेकर खडी थी ओ घर के आंगण मे मेरा इतेजार करते आंधिया कुछ ऐसे चली की दिये की लौ न बुजा सकी उसके पलू ने रोख रखा था तुफानि लहरो को भी बस एक टकी लगी रखी थी उसकी आखो की रस्ते पे और मैखाने मे उसकी शाम ...