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आज भी है मैला ढोने की प्रथा!

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कविता मैला ढ़ोना डा.सामबे वह ढ़ोती थी मैला वह भी ढ़ोता था मैला देखा था मैंने सड़कों पर अस्सी के दशक तक! मेरे घर की सड़क के आखिरी छोर पर था मैला डिपो घरवालों से सुना था अंगरेजों के जमाने में मेरे घर के ...

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लेखक के बारे में
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OP Sambey

गजल:दुष्यंत के बाद,वाणी प्रकाशन,दिल्ली से प्रकाशित गजल-संग्रह में पांच गजलें।नवभारतटाइम्स,नई दिल्ली,रविवारी में गजल प्रकाशित।सारिका,नई दिल्ली से घटना प्रधान कहानी प्रकाशित।आंदोलन,नाटक प्रकाशित,भूमिका-जनकवि नागार्जुन।समकालीन भारतीय साहित्य,साहित्य अकादमी,नई दिल्ली,में आलेख।अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविता,कथा,गजल प्रकाशित।

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