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ग़ज़ल

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4.4

ग़ज़ल पत्थरों का ये बड़ा अहसान है हर क़दम पर अब यहाँ भगवान है। वो बुझा पाई न जलते दीप को ये हवा का भी बड़ा अपमान है। देखता ही शब्द बेचारा रहा अर्थ को मिलता रहा सम्मान है। फिर खिलौनों की दुकानें सज ...