ग़ज़ल पत्थरों का ये बड़ा अहसान है हर क़दम पर अब यहाँ भगवान है। वो बुझा पाई न जलते दीप को ये हवा का भी बड़ा अपमान है। देखता ही शब्द बेचारा रहा अर्थ को मिलता रहा सम्मान है। फिर खिलौनों की दुकानें सज गईं मुश्किलों में बाप की अब जान है। दफ़्न सीने में है हर इक आरज़ू बन गया दिल जैसे क़ब्रिस्तान है। जब कोई प्यारा सा बच्चा हॅस दिया यूँ लगे सरगम भरी इक तान है। आप सब के ख़्वाब हों पूरे सभी बस 'शरद' के दिल में ये अरमान है। ग़ज़ल जो अलमारी में हम अख़बार के नीचे छुपाते हैं, तो वो ही चन्द पैसे मुश्किलों में ...
रिपोर्ट की समस्या
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