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हिन्दी

सद्गति

4.6
20323

दुखी चमार द्वार पर झाडू लगा रहा था और उसकी पत्नी झुरिया, घर को गोबर से लीप रही थी। दोनों अपने-अपने काम से फुर्सत पा चुके थे, तो चमारिन ने कहा, 'तो जाके पंडित बाबा से कह आओ न। ऐसा न हो कहीं चले जायँ।' ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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    Jagjit Kalra
    09 एप्रिल 2019
    मुंशी जी की रचना को सितारें दें, समीक्षा करें। ठीक ही है, आज एक दीपक को कहा कि वो सूरज को रौशनी दिखाये। मुंशी जी शायद हम सभी की कल्पना से भी बहुत ऊंचे थे। उनके चरणों की धूल का एक कण भी हम जैसे लोहे को सोना बना दे..
  • author
    Dr. Nilesh
    14 सप्टेंबर 2017
    पहले के ऊंच नीच को सही शब्दों में बयान किया गया है। और कहीं कहीं पर आज भी ये सब हो रहा है।
  • author
    Shubham Mishra
    12 ऑगस्ट 2019
    देखिये ये बात किसी समय क् लिए सही हो सकती है। कि पहले ऐसे समाज में भावना थी। लेकिन अब समय बदला है । अगर हम अब भी ऐसे सोच रखे की पहले लोगो ने ऐसा किया तो हमारा समाज विखण्डितहो जायेगा हम समाज से प्रेम सदाचार सद्भावना जैसी चीजें खत्म हो जायेगी। अच्छा होगा हम अब एक अच्छे समज की स्थापना में मिलकर सहयोग दे । और अपने समाज अपने देश को तरक्की पर ले जाये। और ऐसे कहानियो से अपने अंदर किसी तरह के द्वेष न रखे। अगर यही सब देखना सुरु क्र दिया जाये तो मुगलो और कई मुस्लिम शाशको ने और अंग्रेजो ने उससे कही ज्यादा बूरा किया है हमारे साथ हम पीर इन्ही सब का रोना रोये। बैठ के
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    Jagjit Kalra
    09 एप्रिल 2019
    मुंशी जी की रचना को सितारें दें, समीक्षा करें। ठीक ही है, आज एक दीपक को कहा कि वो सूरज को रौशनी दिखाये। मुंशी जी शायद हम सभी की कल्पना से भी बहुत ऊंचे थे। उनके चरणों की धूल का एक कण भी हम जैसे लोहे को सोना बना दे..
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    Dr. Nilesh
    14 सप्टेंबर 2017
    पहले के ऊंच नीच को सही शब्दों में बयान किया गया है। और कहीं कहीं पर आज भी ये सब हो रहा है।
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    Shubham Mishra
    12 ऑगस्ट 2019
    देखिये ये बात किसी समय क् लिए सही हो सकती है। कि पहले ऐसे समाज में भावना थी। लेकिन अब समय बदला है । अगर हम अब भी ऐसे सोच रखे की पहले लोगो ने ऐसा किया तो हमारा समाज विखण्डितहो जायेगा हम समाज से प्रेम सदाचार सद्भावना जैसी चीजें खत्म हो जायेगी। अच्छा होगा हम अब एक अच्छे समज की स्थापना में मिलकर सहयोग दे । और अपने समाज अपने देश को तरक्की पर ले जाये। और ऐसे कहानियो से अपने अंदर किसी तरह के द्वेष न रखे। अगर यही सब देखना सुरु क्र दिया जाये तो मुगलो और कई मुस्लिम शाशको ने और अंग्रेजो ने उससे कही ज्यादा बूरा किया है हमारे साथ हम पीर इन्ही सब का रोना रोये। बैठ के