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रास्ते

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रास्ते सुगम हों,जरूरी तो नहीं मंजिल मिल जाए,मुमकिन तो नहीं जिंदगी ढूंढ लेती है फिर भी रास्ते पत्थरों पहाड़ों के बीच उफनती नदियों के बीच बियाबाँ वादियों के बीच अकेलेपन की त्रासदी के बीच नन्ही ...

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लेखक के बारे में
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अरुण झा

रचनाकर नहीं हूँ, रचनाधर्मिता का कायल हूँ मगर

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rachna Singh "Singh"
    25 फ़रवरी 2019
    सचमुच जीने के बहाने ढूँढ ही लेती है जिन्दगी हकीकत के करीब...बहुत सुन्दर रचना
  • author
    Alka Mishra "अलका श्री"
    19 अगस्त 2019
    बहुत खूब लिखते हैं आप सर ।दिल से निकले अल्फाज
  • author
    Tarushi ( साक्षी) shrivastava
    28 दिसम्बर 2022
    👌👌
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    Rachna Singh "Singh"
    25 फ़रवरी 2019
    सचमुच जीने के बहाने ढूँढ ही लेती है जिन्दगी हकीकत के करीब...बहुत सुन्दर रचना
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    Alka Mishra "अलका श्री"
    19 अगस्त 2019
    बहुत खूब लिखते हैं आप सर ।दिल से निकले अल्फाज
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    Tarushi ( साक्षी) shrivastava
    28 दिसम्बर 2022
    👌👌