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मन बावरा

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4.7

"अरे भई अभी तक वहां फूलों की मालाएं क्यों नहीं लगाई और सामने वह सामान अभी भी वैसे ही बिखरा पड़ा हुआ है। उफ! कितने ढ़ीले हैं ये  लोग।" यह कहते हुए राघवसिंह के कदम तो आज रुक ही नहीं रहे थे। दो दिन ...