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बेटा लायक - बाप नालायक (लघुकथा)

4.2
16248

बेटा हायर एजुकेशन मॆं जाएगा, इसलिए कोचिंग ले रहा है। उसके पास पढ़ने के अलावा, और किसी से बात करने के लिए टाइम नहीँ है। बाप चुप ! बेटा अब चार वर्षीय-कोर्स करने के लिए अपने शहर से दूर, एक ऐसे शहर ...

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लेखक के बारे में
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सुनील आकाश

मेरा मोबाइल नम्बर है : 8899144803. मैं हिंदी लेखक हूँ । असली नाम है -- सुनील रस्तोगी (पुत्र स्व.राजेन्द्र प्रसाद रस्तोगी)। पिछले 40 वर्षों से लेखन में हूँ। अब भी यह सफर जारी है। उपन्यास, कहानी, गीत, ग़ज़ल, कविताएँ व अखबारों के लिये संपादकीय लेख लिखता रहा हूँ। 'प्रतिलिपि' पर मेरे 30 उपन्यास प्रकाशित हैं। इनमें से 5 उपन्यास प्रिंटेड बुक्स के रूप में भी आ चुके हैं। शेष सब 'प्रतिलिपि' पर ऑनलाइन प्रकाशित हैं। 'देखा प्यार तुम्हारा', 'तुम बिन', 'नज़राना', 'मेरी लाश कहाँ गई' के बाद अब 'सोलमेट' उपन्यास प्रकाशित हो रहा है। "प्रतिलिपि" पर आने से पहले भी, मेरे सैकड़ों कहानियाँ, गीत, ग़ज़ल व अन्य लेखादि देश के चिर-परिचित अखबार या पत्रिकाओं में दशकों से छपते रहे हैं; जैसे---पंजाब केसरी, विश्व मानव, सानुबँध, जाह्नवी, धर्मयुग, कथालोक, कथाबिम्ब, विश्व ज्योति, दर्पण, जग़मग दीप ज्योति, सुपर ब्लेज आदि। शिक्षा :'पी.जी.डी.--जर्नलिज्म', बी.ए. (हिंदी), 'कहानी लेखन' में डिप्लोमा। आयुर्वेद से 'चिकित्सा स्नातक' की डिग्री भी। व्यवसाय : शैक्षिक पुस्तकों के "गोयल ब्रदर्स प्रकाशन, नोएडा" के सम्पादकीय विभाग के 'हिंदी प्रभाग' में थे। (अब रिटायर्ड) पुरस्कृत-सम्मानित रचनाएँ : टेलीग्राम (कहानी, प्रथम पुरस्कार), बदलते रिश्ते (उपन्यास, द्वितीय पुरस्कार), शेषनाग, जलती हुई तीलियाँ, अंधेरी गुफ़ा, रेगिस्तान आदि (तृतीय पुरस्कार प्राप्त) कहानियां हैं। सम्मान : प्रेमचंद लेखक पुरस्कार, 'साहित्य श्री' अवार्ड, प्रतिलिपि कहानी सम्मान, भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान- 2024 आदि। निवास : सी-26, रेलवे रोड, मॊदीनगर-201204 (उ.प्र.)

समीक्षा
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  • author
    Mujahid Saifi
    10 जून 2018
    माँ की ममता के आगे बाप का फटा बनियान अक्सर कमज़ोर नज़र आता है। सनद रहे कि बाप का बनियान इसलिए फटा है क्योंकि वो औलाद के लिये अच्छे कपड़ों के पैसे बचा सके। उम्दा कहानी
  • author
    Akanksha Dikshit
    10 जून 2018
    कहानी अच्छी है पर एकांगी भी है बेटा माँ के करीब है तो पिता से दूर कैसे हुआ ये भी सोचने योग्य है ।वास्तव मे पिता यदि बच्चे के शैशव काल से ही उसके साथ समय नही बितायेगे तो धीरे धीरे भावनात्मक रूप से उससे दूर होते जायेंगे ऐसा अक्सर होता है अपनी व्यस्तता मे वे भूल जाते है कि बच्चे को उनके समय की भी जरूरत है
  • author
    कोमल राजपूत
    18 जनवरी 2019
    बहुत खूबसूरती से आपने लिखा। सच है जब जीवनसाथी ही इज़्ज़त नहीं देता तो बच्चे भी इज़्ज़त नहीं देते। कई बार हम आगे बढ़ने की होड में उन्हें ही पीछे छोड़ देते है जो हमे आगे बढ़ाते है।
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    Mujahid Saifi
    10 जून 2018
    माँ की ममता के आगे बाप का फटा बनियान अक्सर कमज़ोर नज़र आता है। सनद रहे कि बाप का बनियान इसलिए फटा है क्योंकि वो औलाद के लिये अच्छे कपड़ों के पैसे बचा सके। उम्दा कहानी
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    Akanksha Dikshit
    10 जून 2018
    कहानी अच्छी है पर एकांगी भी है बेटा माँ के करीब है तो पिता से दूर कैसे हुआ ये भी सोचने योग्य है ।वास्तव मे पिता यदि बच्चे के शैशव काल से ही उसके साथ समय नही बितायेगे तो धीरे धीरे भावनात्मक रूप से उससे दूर होते जायेंगे ऐसा अक्सर होता है अपनी व्यस्तता मे वे भूल जाते है कि बच्चे को उनके समय की भी जरूरत है
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    कोमल राजपूत
    18 जनवरी 2019
    बहुत खूबसूरती से आपने लिखा। सच है जब जीवनसाथी ही इज़्ज़त नहीं देता तो बच्चे भी इज़्ज़त नहीं देते। कई बार हम आगे बढ़ने की होड में उन्हें ही पीछे छोड़ देते है जो हमे आगे बढ़ाते है।