pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

बूंदों के समंदर कश़्तीं के ज़माने

169
4.7

समीर खिड़की के पास बैठा टकटकी लगाए बाहर होती  मूसलाधार बारिश को देख रहा था। खिड़की के बाहर गिरती बूंदे अंदर आने को बेताब थी मगर खिड़की पर लगे शीशे के कारण उससे टकराकर नीचे चली जाती थी। समीर ने ...