घड़ी तू क्यों इतना नाप तोल कर चलती है, क्यों नहीं मेरी ज़िंदगी की तरह कभी रुकती और कभी मचलती है छोटे कदमों से लम्बा सफ़र तय करती है दो पल का भी आराम नहीं करती तेरे काम की तुझे तनख्वाह भी तुझे कहाँ ...
घड़ी तू क्यों इतना नाप तोल कर चलती है, क्यों नहीं मेरी ज़िंदगी की तरह कभी रुकती और कभी मचलती है छोटे कदमों से लम्बा सफ़र तय करती है दो पल का भी आराम नहीं करती तेरे काम की तुझे तनख्वाह भी तुझे कहाँ ...