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गिद्ध

4.6
90113

नवम्बर का आखिरी हफ्ता चल रहा था और हवा में हल्की सी खुनकी तैरने लगी थी।अभी ठंड आई तो नहीं थी पर मौसम बहुत खूबसूरत था। खूबसूरत फूलों का मौसम।मेरा लान भी फूलों से भरा था । जान बसती है मेरी इन पौधों ...

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लेखक के बारे में

जन्म 31 मई प्रतापगढ़ में निवास लखनऊ रूचि -कवितायेँ एव कहानियां लिखना - कथादेश , निकट ,जनसत्ता , चौथी दुनिया और कई पत्र पत्रिकाओं में कवितायेँ एवं कहानियां प्रकाशित हुई सामाजिक कार्यों में योगदान अपनी संस्था स्वयंसिद्धा द्वारा

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Aakash's Effect
    28 ऑगस्ट 2018
    कथा नायिका के मनोभाव को भली-भांति उकेरा आपने, पुरुषों को घृणित, गिद्ध जैसा दिखाने में भी कोई कसर नही छोड़ी, पुलिस को भी उसमें शामिल कर लिया। यहां तक सब सही रहा। कथा है, कोई भी अच्छा या कोई भी बुरा हो सकता है। किसी एक के अच्छे या बुरे होने से उस प्रजाति को अच्छा बुरा नही ठहराया जा सकता। इस कारण मुझे ये सब बुरा नही लगा। बुरा लगा तब जब कथा नायिका ने भी स्वयं को एक शो पीस की भांति ही खुद को सजा कर प्रस्तुत किया। स्लीवलेस डीप नेक ब्लाउज, 22 इंच की कमर, 34 की होकर 24 की लगना। बस यहीं पर नायिका चूक जाती है। जब वो खुद को शो पीस की भांति प्रस्तुत करेगी तो लोग तो उसका फायदा उठाने का प्रयास करेंगे ही। यहाँ ये कहना कि नायिका अपनी मर्जी का करने के लिए मुक्त है कोई उसे बाध्य नही कर सकता तर्कसंगत नही क्योंकि आचरण की सभ्यता एवं शुद्धता ही मनुष्य की वास्तविक पहचान होती है न कि शारीरिक बनावट। आप लेखिका हैं और मैं मात्र एक पाठक। मुझमें लेखकीय समझ नही अतः आप बेहतर समझ सकती हैं। 🙏🙏🙏
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    Suraj Singh
    31 मे 2016
    पहला शब्द इस कहानी के लिए - दिल दहल गया । करीब दो बार इस कहानी को देखकर इग्नोर कर गया लेकिन अन्ततः खोलकर पढी । जीवन में कई बार कई लोगों की आपबीती सुनी और समझने का प्रयास किया । आपका आभार व्यक्त करते हैं । जीवन को एक बालक की भाँति निर्दोष मन से जीना चाहिए । मुझे आपबीती पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ कि पुरुष होने पर एक शर्म और चोरी का एहसास हुआ । सच कहूँ तो मैं आपकी तारीफ़ इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि मैं आपके प्रति सहानुभूति व्यक्त कर रहा हूँ । करोड़ों महिलाएं ऐसी ही समस्याओं का शिकार बनती जा रही है । इस आपबीती में जितना दर्द आपको हुआ है उतना ही या उससे अधिक आपके पिता एवं माता जी को हुआ होगा । क्योंकि आपका तो दिल और सुहाग टूटा लेकिन उनका तो विश्वास और वजूद हिला है । सबसे ज्यादा दुख फिर संगीता को भी हुआ होगा कर्नल के बारे में जानकार । अन्त में जो आपने साहस और सूझबूझ का परिचय दिया वो अविस्मरणीय और अतुल्य है। आपको चिन्तित होने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है क्योंकि अच्छे लोगों के साथ हमेशा अच्छा ही होता है । अविस्मरणीय सूझबूझ का परिचय देकर आपने दिल जीत लिया। -- आपका शुभचिंतक - सूरज सिंह
  • author
    27 जुन 2019
    कहानी, पात्र, सब अच्छा है। आपकी बात सही भी है, लेकिन आज स्थिति विपरीत हो चुकी है, आम बेचारा पुरुष पारिवारिक बोझ उठाने उनके लिए सुविधाओं की व्यवस्था करने में उलझा है, और उसके विपरीत आजकल लड़कियों की स्थिति किसी से भी नहीं छुपी, और आधुनिकता का चोला पहनी महिलाएं भी किसी से कम पड़ना नहीं चाहती। और अपने शौक पूरा करने, आत्मसंतुष्टि के लिए सामाजिक मूल्यों को किस गर्त में धकेल चुकी है यह भी किसी से नहीं छुपा। अतः सभी आरोप किसी जाति विशेष के सिर करना बिल्कुल भी उचित नहीं। 🙏🙏
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    Aakash's Effect
    28 ऑगस्ट 2018
    कथा नायिका के मनोभाव को भली-भांति उकेरा आपने, पुरुषों को घृणित, गिद्ध जैसा दिखाने में भी कोई कसर नही छोड़ी, पुलिस को भी उसमें शामिल कर लिया। यहां तक सब सही रहा। कथा है, कोई भी अच्छा या कोई भी बुरा हो सकता है। किसी एक के अच्छे या बुरे होने से उस प्रजाति को अच्छा बुरा नही ठहराया जा सकता। इस कारण मुझे ये सब बुरा नही लगा। बुरा लगा तब जब कथा नायिका ने भी स्वयं को एक शो पीस की भांति ही खुद को सजा कर प्रस्तुत किया। स्लीवलेस डीप नेक ब्लाउज, 22 इंच की कमर, 34 की होकर 24 की लगना। बस यहीं पर नायिका चूक जाती है। जब वो खुद को शो पीस की भांति प्रस्तुत करेगी तो लोग तो उसका फायदा उठाने का प्रयास करेंगे ही। यहाँ ये कहना कि नायिका अपनी मर्जी का करने के लिए मुक्त है कोई उसे बाध्य नही कर सकता तर्कसंगत नही क्योंकि आचरण की सभ्यता एवं शुद्धता ही मनुष्य की वास्तविक पहचान होती है न कि शारीरिक बनावट। आप लेखिका हैं और मैं मात्र एक पाठक। मुझमें लेखकीय समझ नही अतः आप बेहतर समझ सकती हैं। 🙏🙏🙏
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    Suraj Singh
    31 मे 2016
    पहला शब्द इस कहानी के लिए - दिल दहल गया । करीब दो बार इस कहानी को देखकर इग्नोर कर गया लेकिन अन्ततः खोलकर पढी । जीवन में कई बार कई लोगों की आपबीती सुनी और समझने का प्रयास किया । आपका आभार व्यक्त करते हैं । जीवन को एक बालक की भाँति निर्दोष मन से जीना चाहिए । मुझे आपबीती पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ कि पुरुष होने पर एक शर्म और चोरी का एहसास हुआ । सच कहूँ तो मैं आपकी तारीफ़ इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि मैं आपके प्रति सहानुभूति व्यक्त कर रहा हूँ । करोड़ों महिलाएं ऐसी ही समस्याओं का शिकार बनती जा रही है । इस आपबीती में जितना दर्द आपको हुआ है उतना ही या उससे अधिक आपके पिता एवं माता जी को हुआ होगा । क्योंकि आपका तो दिल और सुहाग टूटा लेकिन उनका तो विश्वास और वजूद हिला है । सबसे ज्यादा दुख फिर संगीता को भी हुआ होगा कर्नल के बारे में जानकार । अन्त में जो आपने साहस और सूझबूझ का परिचय दिया वो अविस्मरणीय और अतुल्य है। आपको चिन्तित होने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है क्योंकि अच्छे लोगों के साथ हमेशा अच्छा ही होता है । अविस्मरणीय सूझबूझ का परिचय देकर आपने दिल जीत लिया। -- आपका शुभचिंतक - सूरज सिंह
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    27 जुन 2019
    कहानी, पात्र, सब अच्छा है। आपकी बात सही भी है, लेकिन आज स्थिति विपरीत हो चुकी है, आम बेचारा पुरुष पारिवारिक बोझ उठाने उनके लिए सुविधाओं की व्यवस्था करने में उलझा है, और उसके विपरीत आजकल लड़कियों की स्थिति किसी से भी नहीं छुपी, और आधुनिकता का चोला पहनी महिलाएं भी किसी से कम पड़ना नहीं चाहती। और अपने शौक पूरा करने, आत्मसंतुष्टि के लिए सामाजिक मूल्यों को किस गर्त में धकेल चुकी है यह भी किसी से नहीं छुपा। अतः सभी आरोप किसी जाति विशेष के सिर करना बिल्कुल भी उचित नहीं। 🙏🙏