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गांठें

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कुछ पता चला...तेरे बाजूवाली लड़की, किसके संग भाग गयी?!” “भाग गयी!! कब...कैसे?!!!” “अजी मां गयी थी दिल्ली, अपने पार्लर के लिए क्रीम, शैम्पू वगैरा लेने...पट्ठी को मौका मिल गया. कर लिया मुंह काला... ...

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लेखक के बारे में

शिक्षा – बी. एस. सी., बी. एड. (कानपुर विश्वविद्यालय) परास्नातक- फल संरक्षण एवं तकनीक (एफ. पी. सी. आई., लखनऊ) अतिरिक्त योग्यता- कम्प्यूटर एप्लीकेशंस में ऑनर्स डिप्लोमा (एन. आई. आई. टी., लखनऊ) कार्य अनुभव- १-      सेंट फ्रांसिस, अनपरा में कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य २-     आकाशवाणी कोच्चि के लिए अनुवाद कार्य सम्प्रति- सदस्य, अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था, लखनऊ   प्रकाशित रचनाएँ- १-      प्रथम कथा संग्रह’ अपने अपने मरुस्थल’( सन २००६) के लिए उ. प्र. हिंदी संस्थान के ‘पं. बद्री प्रसाद शिंगलू पुरस्कार’ से सम्मानित ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संकलनों ‘पत्तियों से छनती धूप’(सन २००४), ‘परिक्रमा’(सन २००७), ‘आरोह’(सन २००९) तथा प्रवाह(सन २०१०) में कहानियां प्रकाशित लखनऊ से निकलने वाली पत्रिकाओं ‘नामान्तर’(अप्रैल २००५) एवं राष्ट्रधर्म (फरवरी २००७)में कहानियां प्रकाशित झांसी से निकलने वाले दैनिक पत्र ‘राष्ट्रबोध’ के ‘०७-०१-०५’ तथा ‘०४-०४-०५’ के अंकों में रचनाएँ प्रकाशित द्वितीय कथा संकलन ‘नागफनी’ का, मार्च २०१० में, लोकार्पण सम्पन्न ‘वनिता’ के अप्रैल २०१० के अंक में कहानी प्रकाशित ‘मेरी सहेली’ के एक्स्ट्रा इशू, २०१० में कहानी ‘पराभव’ प्रकाशित कहानी ‘पराभव’ के लिए सांत्वना पुरस्कार २६-१-‘१२ को हिंदी साहित्य सम्मेलन ‘तेजपुर’ में लोकार्पित पत्रिका ‘उषा ज्योति’ में कविता प्रकाशित  ‘ओपन बुक्स ऑनलाइन’ में सितम्बर माह(२०१२) की, सर्वश्रेष्ठ रचना का पुरस्कार  ‘मेरी सहेली’ पत्रिका के अक्टूबर(२०१२) एवं जनवरी (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित  ‘दैनिक जागरण’ में, नियमित (जागरण जंक्शन वाले) ब्लॉगों का प्रकाशन  ‘गृहशोभा’ के जून प्रथम(२०१३) अंक में कहानी प्रकाशित  ‘वनिता’ के जून(२०१३) और दिसम्बर (२०१३) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित बोधि- प्रकाशन की ‘उत्पल’ पत्रिका के नवम्बर(२०१३) अंक में कविता प्रकाशित -जागरण सखी’ के मार्च(२०१४) के अंक में कहानी प्रकाशित १८-तेजपुर की वार्षिक पत्रिका ‘उषा ज्योति’(२०१४) में हास्य रचना प्रकाशित  १९- ‘गृहशोभा’ के दिसम्बर ‘प्रथम’ अंक (२०१४)में कहानी प्रकाशित २०- ‘वनिता’, ‘वुमेन ऑन द टॉप’ तथा ‘सुजाता’ पत्रिकाओं के जनवरी (२०१५) अंकों में कहानियाँ प्रकाशित २१- ‘जागरण सखी’ के फरवरी (२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित २२- ‘अटूट बंधन’ मासिक पत्रिका ( लखनऊ) के मई (२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित २३- ‘वनिता’ के अक्टूबर(२०१५) अंक में कहानी प्रकाशित 

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    18 नवम्बर 2019
    माननीया सुश्री विनीता शुक्ला जी बहुत-बहुक बधाई और साधुवाद। आधुनिक परिवेश का सुन्दर चित्रण किया है कहानी के माध्यम से । आज न किसी का कोई चरित्र है और न ही किसी की जबान । केवल स्वार्थसिद्धि ही चहुँ ओर दिखाई देती है। जरा सा कोई पल्ङा भारी देखा , लोग मानमर्यादा,इज्जत-आबरू सब ताक पर रख कर लालच के लड्डू की ओर भाग लेते हैं। पुनः बधाई और शुभकामनाएं।
  • author
    21 नवम्बर 2019
    . शुक्ला जी सुंदर कहानी अच्छी पाठक सामग्री स्वस्थ शब्द धन्यवाद
  • author
    विजय सिंह "बैस"
    08 सितम्बर 2019
    बहुत अच्छी रचना । क्षणिक लाभ के लिए रिश्तों को ठुकराने की सजा तो उचित है ।
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    18 नवम्बर 2019
    माननीया सुश्री विनीता शुक्ला जी बहुत-बहुक बधाई और साधुवाद। आधुनिक परिवेश का सुन्दर चित्रण किया है कहानी के माध्यम से । आज न किसी का कोई चरित्र है और न ही किसी की जबान । केवल स्वार्थसिद्धि ही चहुँ ओर दिखाई देती है। जरा सा कोई पल्ङा भारी देखा , लोग मानमर्यादा,इज्जत-आबरू सब ताक पर रख कर लालच के लड्डू की ओर भाग लेते हैं। पुनः बधाई और शुभकामनाएं।
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    21 नवम्बर 2019
    . शुक्ला जी सुंदर कहानी अच्छी पाठक सामग्री स्वस्थ शब्द धन्यवाद
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    विजय सिंह "बैस"
    08 सितम्बर 2019
    बहुत अच्छी रचना । क्षणिक लाभ के लिए रिश्तों को ठुकराने की सजा तो उचित है ।