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कैफे काॅफी डे

3.5
2532

हम दोनो एक दूसरे का हाथ थामे दिल्ली के काॅनाट पैलेस के CCD की सीढियो पर चढे जा रहे थे । हाथ इतनी मजबूती से थामे थे जो एक पल भी छूटने को तैयार नही था । अंदर घुसते ही नजरे दौङायी तो दायी ओर की सीट ...

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लेखक के बारे में

न मैं कवि हूँ और न कोई शब्दों का खिलाडी. मुझे अपनी भावनाओ को व्यक्त करने के लिए चंद शब्दों की जरुरत पड़ती हैं और मेरे शब्दकोष का अल्पज्ञान कभी मुझे कोसता भी हैं मगर मैं जैसे तैसे शब्दों को पिरो कर अपनी तरफ से अपने उदगार व्यक्त करता हूँ। कभी वो कविता की शक्ल अख्तियार कर लेती हैं तो कभी वो शब्दों का ताना बाना. कभी कुछ लोग पढ़ लेते हैं और कभी कुछ लोग देख कर बकवास करार दे देते हैं......!! मगर मैं भी जिद्दी हूँ भावनाओ के उफान में बहकर फिर कुछ न कुछ लिख ही लेता हूँ बिना इस बात की परवाह किये की ये सिर्फ मेरे तक ही सीमित रह जाएँगी या कुछ लोगो को पसंद आएँगी., वास्तव में, मेरा सफ़र हैं इस खूबसूरत ज़िन्दगी का -जो भगवान ने हमें दी हैं....!!!

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Raj Ev
    13 नवम्बर 2017
    वाह
  • author
    Akash Writings
    25 अप्रैल 2021
    बिल्कुल भी ठीक से संपादित नहीं किया.... डायलॉग मिस है... कुछ भी समझ नहीं आया... माफ करें लेकिन अपने लिखे लेख को एक बार तटस्थ होकर पढ़कर देखे..
  • author
    नूपुर गज्जर "Nishhaah"
    25 सितम्बर 2017
    nice one
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    Raj Ev
    13 नवम्बर 2017
    वाह
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    Akash Writings
    25 अप्रैल 2021
    बिल्कुल भी ठीक से संपादित नहीं किया.... डायलॉग मिस है... कुछ भी समझ नहीं आया... माफ करें लेकिन अपने लिखे लेख को एक बार तटस्थ होकर पढ़कर देखे..
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    नूपुर गज्जर "Nishhaah"
    25 सितम्बर 2017
    nice one