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☺️👍👌 करत करत अभ्यास के 👌👍☺️

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डायरी लेखन 15.5.22 रविवार 11:55 प्रातः प्रिय संगवारी राम राम प्रतिलिपि के समस्त मित्रों को स्नेहिल अभिवादन एक दिन हम जब मॉर्निंग वॉक कर रहे थे तब पाथवे में चींटियों की  पूरी जमात इधर से उधर घूम रही ...

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लेखक के बारे में
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Jyoti Bala Shrivastava

मैं डॉक्टर श्रीमती ज्योति नरेश श्रीवास्तव "प्रेरणा " मुझे पढ़ना और पढ़ाना दोनों ही अच्छा लगता है। मेरा प्रिय शौक कहानी कविता लेख और संस्मरण लिखना है। मेरी रचनाएं समाचार पत्रों में प्रकाशित होती हैं । अब वर्तमान में मैं प्रतिलिपि के माध्यम से आप लोगों से जुड़ी हुई हूं । लेखन के इस खुले आसमान के नीचे आकर मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद मैंने ऐसा ही सपना देखा था जो अब साकार हो रहा है।

समीक्षा
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  • author
    15 मई 2022
    वाह...आपने दृढ़ इच्छाशक्ति और लगातार अभ्यास से ड्राइविंग सीख लिया, बहुत बहुत बधाई आपको💐💐💐💐💐💐💐💐शीर्षक को सार्थक करती हुई अतिसुन्दर और उत्कृष्ट संस्मरणात्मक अभिव्यक्ति आपकी👌👌👌👌👌👌👌👌
  • author
    15 मई 2022
    ✍️👌सुंदर ✍️👌लिखा ✍️👌है 🌱🌱💞💞🌱🌱✍️👌🌳🌳🌳💞💞💞
  • author
    Mohan Lal
    15 मई 2022
    वाहजी, टॉपिक पर लिखा लेख वाक़ई, लाज़वाब, बेहतरीन अभिव्यक्ति जी ज़नाब। उम्दा लेखन करते हैं आपजी। सोते रहे तुम गफ़लत की नींद में तुम बस सदा यूंही सोते रहे। रोते रहे तुम रोते रहे क़िस्मत पे अपनी नित यूंही रोते रहे।। कुछ नहीं कहा कुछ नहीं किया चाहे कुछ भी धरा पे हो जाए। ढ़ोते रहे तुम ढोते रहे अपना सलीब तुम बस यूंही ढोते रहे।। तुम्हारी ये तंग मुर्दादिली 'मोहन' तुम्हारे भविष्य को खा जाएगी। बोते रहे तुम बोते रहे अपने लिए तीक्ष्ण कांटें बस यूंही बोते रहे।। हमने भी टॉपिक पर रचना लिखी है, कृपया पढ़कर समुचित समीक्षा अवश्य करें।
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    15 मई 2022
    वाह...आपने दृढ़ इच्छाशक्ति और लगातार अभ्यास से ड्राइविंग सीख लिया, बहुत बहुत बधाई आपको💐💐💐💐💐💐💐💐शीर्षक को सार्थक करती हुई अतिसुन्दर और उत्कृष्ट संस्मरणात्मक अभिव्यक्ति आपकी👌👌👌👌👌👌👌👌
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    15 मई 2022
    ✍️👌सुंदर ✍️👌लिखा ✍️👌है 🌱🌱💞💞🌱🌱✍️👌🌳🌳🌳💞💞💞
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    Mohan Lal
    15 मई 2022
    वाहजी, टॉपिक पर लिखा लेख वाक़ई, लाज़वाब, बेहतरीन अभिव्यक्ति जी ज़नाब। उम्दा लेखन करते हैं आपजी। सोते रहे तुम गफ़लत की नींद में तुम बस सदा यूंही सोते रहे। रोते रहे तुम रोते रहे क़िस्मत पे अपनी नित यूंही रोते रहे।। कुछ नहीं कहा कुछ नहीं किया चाहे कुछ भी धरा पे हो जाए। ढ़ोते रहे तुम ढोते रहे अपना सलीब तुम बस यूंही ढोते रहे।। तुम्हारी ये तंग मुर्दादिली 'मोहन' तुम्हारे भविष्य को खा जाएगी। बोते रहे तुम बोते रहे अपने लिए तीक्ष्ण कांटें बस यूंही बोते रहे।। हमने भी टॉपिक पर रचना लिखी है, कृपया पढ़कर समुचित समीक्षा अवश्य करें।