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उदासीनता

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कभी शुष्क थी शाख यह लहलहाती हुई झेलकर मार ऋतुओं की  नवअंकुरित फिर हुई   उज्जवलित सूर्य यह था घिरा तम से पिछले प्रहर जिसने खोई नहीं अपनी आभा विजय लक्ष्य जिसका हो गिरता है, उठता है, थकता नहीं कष्ट ...

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Nadeem Zaheer
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