pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

अटूट विश्वास

78

कौवे के सामने भला, नन्हीं कैसे टिक पाती? सोचा था सहयोग मिलेगा, और बढेगी ख्याति। लेकिन उसको कहां पता है, दुनियां का दस्तूर। ऊपर उठते को दुनियां नीचे खींचती जरुर॥ पर्वत पर चढना हो तो, सांसे तो फूलेगी ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है