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प्रतिलिपि पर मेरा सफर- ‘वर्षा’

13 जून 2023

प्रिय लेखक ! अगर आपको हॉरर पसंद हो और आपने "वर्षा जी " का नाम ना सुना हो, ये तो हो ही नहीं हो सकता है। 'वर्षा जी' का नाम हॉरर लेखन में अब किसी पहचान का मोहताज़ नहीं है। इतनी परिपक्व लेखिका ने जब अपना लेखन सफर प्रतिलिपि पर साझा किया तो हमने सोचा क्यों ना उनका ये शानदार सफर आप सभी लोगों से भी साझा किया जाए।

प्रतिलिपि पर मेरा सफर- वर्षा’

नमस्कार दोस्तों,


लीजिए मैं फिर हाजिर हूं। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। एक और नया विषय - प्रतिलिपि पर मेरा सफर!

आज मैं किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं करूंगी बल्कि आपको अपनी कहानी सुनाऊंगी। मेरा यहां आना, लिखना आप सबसे जुड़ना, सबकुछ! हां ये कहानी थोड़ी बोरिंग लग सकती है बिना किसी हॉरर के, बिना किसी सस्पेंस थ्रिलर के!

बात है जनवरी 2019 की जब मैं घूमते फिरते प्रतिलिपि पर आ गई थी। मैं यहां पढ़ने को आई थी और पहला अनुभव था ऑनलाइन कुछ पढ़ने का! वरना पुरानी किताबों पन्नों से उठती मुश्क से अलग ही इश्क है हमारा।

ऐसा लगता था जैसे एक लेखक हमेशा था मेरे अंदर जो बाहर आने को मचलता रहता था। बहुत सी कहानियां लिखीं थी मैंने और ट्रक भर डायरियां भर दी थीं। कमरा भर पुरस्कार जीते थे लेखन में.... नहीं ऐसा कुछ नहीं है!  पढ़ते हुए ही एक दिन मैंने पाया कि मैं यहां लिखा भी जा सकता है तो सोचा चलो लिखती हूं! लिखने का वो मेरा पहला अनुभव था और कभी सोचा नहीं था कि लिखूंगी कभी। इस तरह मैंने अपनी पहली छोटी सी कहानी का पहला छोटा सा भाग लिखा। कहानी? वही मुर्दों की ट्रेन-भाग 1!

मुझे याद आता है तब उस पहले ही भाग पर मिली चार समीक्षाएं - बहुत अच्छी शुरुआत है! अगला भाग कब आएगा?
अरे वाह! कोई मुझे पढ़ना चाहता है! क्या बताऊं ये महसूस करना कितना खास था। जरूर लिखूंगी अगला भाग! देखी आपने समीक्षाओं की ताकत! मैंने तो यूं ही हिचकते हुए गाड़ी स्टार्ट कर दी थी। धक्का तो आप पाठकों ने लगाया। और मेरा लिखने का सफर चल पड़ा जो आज तक जारी है।

मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे शुरू से ही, अपनी पहली कहानी से ही पाठकों का भरपूर प्यार और सहयोग मिला है। मैंने कभी सोचा नहीं था लिखूंगी। मेरे भीतर के हद से ज्यादा दबे हुए लेखक को बाहर लाने, उसे मौका देने और निखारने का श्रेय पूरी तरह प्रतिलिपि व पाठकों को जाता है। वरना मैं और लिखना? दूर दूर तक कोई संभावना ही नहीं थी।

मुझे आज भी याद है मैं एक पेननेम के साथ लिखा करती थी। शुरुआत का एक साल तो कोई मुझे मेरे नाम से जानता तक नहीं था! और यही नहीं मुझमें इतनी ज्यादा झिझक थी कि मैंने घर पर भी किसी को नहीं बताया था कि मैं लिखती भी हूं। पर एक दिन मेरे बड़े भाई को पता चला और उन्होंने डांटा। ये क्या है? मैं अपने नाम से क्यों नहीं लिखती? और "शैतान से समझौता" के बाद मैंने अपने नाम से लिखना शुरू किया। मगर आपको आज भी मेरी शुरुआती कहानियों पर कुछ ऐसे कमेंट्स दिख जाएंगे - "बहुत अच्छी कहानी है सर!"

मैं लिखती रही और हर कहानी पिछली कहानी से ज्यादा आनंद देती। मुझे भी और पाठकों को भी। बस ये प्रिय शौक  बन गया मेरा। बस इतना ही तो था। मगर एक दिन मुझे प्रतिलिपि की आईपी टीम से फोन आता है; वो मेरी कहानियों के राइट्स लेना चाहते हैं, ताकि उनपर कुछ और भी काम किए जा सकें। और भी काम! मसलन कामिक्स, आडियो बुक और हां! वेबसीरीज तक! क्योंकि वो पहले ही इस दिशा में काम कर रहे थे।

और मैं सोच रही थी ये क्या है भई! ऐसा भी होता है क्या? मतलब मैं तो अपने लिखने में ही खुश थी! खैर एग्रीमेंट हुआ और मुझे मेरी पहली कमाई हुई वो भी लिखने से! ये सब किसी अनदेखे सपने के सच होने सा था। मैंने एक लंबा समय नौकरी की थी फिर खुद का काम करते हुए बिताया था। पर ये कमाई जरा खास थी क्योंकि ये मुझे मेरी राइटिंग ने दी थी।

और लगभग उसी एग्रीमेंट के साथ प्रतिलिपि ने मेरी दो कहानियों की डील प्रसिद्ध आडियोबुक कंपनी स्टोरीटेल के साथ भी की! उस जैसी कंपनी के साथ जुड़ना ही मेरे जैसी नई लेखक के लिए गर्व की बात थी! और मेरी शुरूआत की कहनियों में शामिल "सिंड्रेला" और "बहरूपिया" को चुना गया था। छोटी ही कहानियां थी मगर इनके लिए मुझे बकायदा किसी स्थापित लेखक की तरह ही पेमेंट किया गया था। बात सिर्फ पैसों की नहीं थी,  मगर इसने मुझमें एक आत्मविश्वास जगाया था। हम लिखकर भी पैसे कमा सकते हैं! मतलब सच में ऐसा हो सकता है? दूसरी तरफ यहां पाठकों का प्यार और सहयोग भी था जो लगातार बढ़ रहा था। बस और क्या चाहिए!

मुझे प्रतिलिपि की यही बात सबसे अच्छी लगती है कि हमें यहां इंतजार नहीं करना पड़ता, हम जो लिखते हैं उस पर पाठकों की प्रतिक्रियाएं तुरंत मिलती हैं। किसी अनमोल खजाने सी! इनसे प्रेरित होकर, समझकर, खुद में सुधार लाकर हम बहुत कुछ बेहतर कर सकते हैं। लिखना सीख सकते हैं और मैंने हमेशा यही किया है।

खैर एग्रीमेंट के बाद प्रतिलिपि ने मेरी कहानियों पर कामिक्स के लिए काम शुरू किया। हांलांकि मैं थोड़ा हिचक रही थी। कहानियों पर कामिक्स! पता नहीं क्या होगा? और मेरा पूरा जोर अपनी कहानियों के पेपरबैक लाने पर था। दिमाग में ऐसी बातें भरी हुई थीं कि बिना पेपरबैक के लेखक होने का क्या मतलब? और पेपरबैक के आते ही दोनों तरफ एक-एक पंख जुड़ जाते। आकाश से देवता पुष्प वर्षा करते हैं, अप्सराएं नृत्य करती हैं वगैरह वगैरह..

खैर तब प्रतिलिपि भी नई ही थी इस क्षेत्र में। "सिंड्रेला" "बहरूपिया" और "मुर्दों की ट्रेन" इनकी शुरुआत की कामिक्सों में से थीं। बहरूपिया और सिंड्रेला भी पसंद की गईं पर भाईसाब मुर्दों की ट्रेन! छा गई ये तो कामिक्स में! बहुत ज्यादा पसंद किया गया इसे। धीरे धीरे 'शैतान से समझौता' और 'निया' भी जुड़े इस क्रम में। और इसी दौरान एक नया अनुभव भी हुआ - कामिक्स लिखना!

मुझे प्रतिलिपि कामिक्स की तरफ से काल आया कि क्या मैं अपनी कहानियों के एपिसोड्स लिखूंगी? और मैंने भी सोचा चलो ये भी कर के देखा जाए! ना तो मैं करती नहीं कभी! और मुझे खुशी है कि ये काम भी मैंने पहले सीखा फिर अच्छी तरह से किया। टीम ने भी काफी सहयोग किया और मुझे कुछ नया सीखने का मौका मिला। कामिक्स भी उम्मीद से कहीं ज्यादा सफल हुई। निया सीरीज प्रतिलिपि कामिक्स की सबसे सफलतम कामिक्सों में से एक है। जितनी वो कहानी यहां नहीं पढ़ी गई उससे कहीं ज्यादा, बल्कि बहुत ज्यादा कामिक्स एप पर पढ़ी गई। उसने एक अलग ही पहचान बनाई अपनी। मुझे प्रतिलिपि कामिक्स के पाठक भी पहचानने लगे थे। बल्कि उनमें से बहुत से मेरे आज यहां नियमित पाठक हैं। आगे चलकर मैंने बकायदा एग्रीमेंट किया। कहानियों के एपिसोड्स लिखे और इसके लिए प्रतिलिपि की तरफ से पैसे भी मिले।

उस कामिक्स की विडियो एनिमेशन भी बनीं और यूट्यूब पर भी काफी लोकप्रिय हुई। मुर्दों की ट्रेन ने तो करोड़ व्यू का आंकड़ा भी छुआ था। ये भी जबरदस्त अनुभव रहा।

इसी दौरान प्रतिलिपि से एक और डील हुई जिसमें उन्होंने मेरी और भी कहानियों के राइट्स लिए। एक बार फिर बढ़िया पैसे मिले और इससे मैंने कोई महंगे शौक तो पूरे नहीं किए। इसके लिए कोई शौक होने भी तो चाहिए। मैं निरी लहरी हूं इस मामले में! बस ये मेरी सेविंग का हिस्सा बनते गए और मेरा आत्मविश्वास बढ़ाते गए।

इसी दौरान मैंने वेबसीरीज प्रतियोगिता भी जीती और प्रथम पुरस्कार जीता। ई मुकिया तो कमाल कर गई। और प्रतियोगिता को जीतना तो एक जबरदस्त अनुभव था ही!

उसी समय निया सीरीज को एक वेबसीरीज में ढालने की कोशिश चल रही थी। प्रतिलिपि ने इसके लिए याली ड्रीमवर्क के साथ काम शुरू किया। मुझे फिर काल आया कि मुझे एक मीटिंग में अपनी दो कहानियां (खिड़की, निया सीरीज) का काल पर नरेशन देना होगा। मीटिंग हुई प्रोड्यूसर विवेक रंगचारी जी और उनके पार्टनर के साथ।
अब बताइए कहानी सुनाएं वो भी हम! अरे आवाज़ तो निकलती ही नहीं मेरी ये करूं कैसे? हां मेरी अलग समस्या थी भई! खैर मीटिंग हुई और ये भी शानदार अनुभव रहा। बैठ कर अपनी कहानी घंटों तक सुनाना और खुद को कोसना कि (छोटा नहीं लिख सकती थी!!!) पर सच में मजा बहुत आया। कभी नहीं सोचा था कि मैं खुद अपनी कहानी किसी प्रोड्यूसर को सुनाऊंगी।
इस मीटिंग के बाद ही निया सीरीज चुन ली गई। दोस्तों इस सीरीज पर काफी दिनों से काम चल रहा है और कुछ बेसिरपैर की रुकावटें भी आ रही हैं। पहले ही कोविड ने देर करा दी। मगर जैसे ही कुछ तय होता है आप सबसे शेयर करूंगी। कहते हैं न अच्छे कामों में रुकावटें ज्यादा आती हैं।

खैर हम फिर लग गए शान्ति से लिखने में और कुछ दिनों बाद एक और डील हुई। गाना एप पर खिड़की खुलने वाली थी! मतलब इसकी आडियो बुक वहां पॉडकास्ट होती! ये डील भी गज़ब की थी। एक बार फिर हमको बड़की लेखिका की तरह ट्रीट किया गया और बढ़िया पैसे मिले इस डील से!

मगर एक शौक बाकी था जिसे मैंने बहुत पीछे छोड़ दिया था। अपनी खुद की किताब को छपते देखना। बस शौक ही था मैं लगातार पेपरबैक के लिए शायद ही लिखती। ये शौक भी पूरा हुआ जब मंजुल पब्लिकेशन ने मेरी पहली प्रिंट बुक बहरूपिया प्रकाशित की। सच में इसकी प्रति को हाथ में लेना, इसे महसूस करना वैसा ही था जैसे किसी बच्चे को पहली बार गोद में लेना हो। अद्भुत! मैंने कई ब्लॉग भी पढ़े जहां इसकी ढेरों सकारात्मक समीक्षाएं दर्ज थीं। पहले उपन्यास को देखते हुए मेरे लिए इतना भी बहुत था।

इसी बीच प्रतिलिपि एप पर भी नए बदलाव आए। पहले स्टिकर्स, फिर प्रीमियम और फिर सुपरफैन सब्सक्रिप्शन।  ऐसा ही था शायद! मेरी कहानियों को प्रीमियम मे तब जगह नहीं मिली थी। मैं ज्यादा लंबा नहीं लिखती थी न। मतलब लंबे धारावाहिक ही इसके लिए चुने गए थे शुरुआत में। पर जब सुपरफैन सब्सक्रिप्शन आया तब जरूर पाठकों ने मुझे सब्सक्राइब किया। हांलांकि एक नई बहस भी शुरू हुई - क्या लेखकों को पैसे कमाने चाहिए? क्या इस एप को पैसे कमाने चाहिए? चुपचाप साहित्य सेवा नहीं करनी चाहिए?

खैर मैं इस बारे में पहले भी अपने विचार कई बार रख चुकी हूं इसलिए इस लेख को लंबा नहीं करूंगी। मैं शुरू से ही इस पक्ष में रही हूं कि हां, लेखकों को उनका हक मिलना चाहिए। लेखन हमारे यहां भी एक स्थापित कैरियर होना चाहिए और हमारे पाठकों में पढ़ने के बदले पैसे देने की आदत होनी चाहिए। मैंने खुल कर इसका समर्थन किया और आज भी करती हूं। बात पैसों की नहीं है और देखा जाए तो इनसे कोई खास कमाई भी नहीं है। बात उसूलों की है, लेखकों के आत्मसम्मान की है। और मुझे खुशी है कि प्रतिलिपि ने इस दिशा में प्रयास किया। और कुछ हो न हो ये अपने आप में एक सकारात्मक बदलाव तो थे ही।

मुझे कभी किसी चमत्कार की उम्मीद थी भी नहीं। धीरज तो सबसे ज्यादा जरूरी है फिर चाहे हम कुछ भी करें। और कहते हैं न कि हर बड़ी चीज़ समय मांगती है। अच्छे, बड़े और सकारात्मक बदलाव यूं ही नहीं होते। मैं नहीं सोचती कि इन सब्सक्रिप्शन और प्रीमियम के पैसों से लेखक मालामाल हो जाएंगे। पर सबसे बड़ी चीज़ है भविष्य की उम्मीद जो यहां नज़र आती है। शायद आगे प्रतिलिपि भी लेखकों के लिए यूट्यूब की तरह काम करे और लेखक इसे प्रोफेशन बना सकें। बाकी मेहनत का कोई विकल्प नहीं। हमें खुद की पहचान बनानी है, बने रहना है तो लिखना होगा, लिखते रहना होगा। निरंतरता तो जरूरी है वो भी धीरज के साथ। इसका कोई और विकल्प नहीं फिर चाहे आप कुछ भी करें।

ऐसा नहीं कि इस दौरान सब अच्छा ही हुआ। कुछ बुरे अनुभव भी थे। जब पहचान मिली तो कुछ और भी लोगों ने संपर्क किया। कुछ पब्लिशर्स, कुछ दूसरी आडियो बुक कंपनी। उनसे कुछ डील की भी हुई और अनुभव अच्छा तो बिलकुल नहीं रहा। मैं ये नहीं कहती कि प्रतिलिपि के बाहर काम नहीं करना चाहिए या नहीं करूंगी। पर एक बात कहना चाहूंगी कि जो सुरक्षा का एहसास यहां हुआ है  वो कहीं और नहीं हुआ। आए दिन सुनती हूं आडियो कंपनीयों के घोटाले! उनसे परेशान लेखक! मगर ऐसी कोई दिक्कत यहां नहीं हुई। यहां भी विवाद हुए, आपसी मतभेद हुए मगर ये भरोसा हमेशा रहा कि प्रतिलिपि कभी लेखकों के साथ कुछ गलत नहीं करेगी।

अभी भी मैं लिख रही हूं और उम्मीद है लिखती रहूंगी। पता है क्या? मेरा एक सपना है कि मैं लिखूं और लेखक के तौर पर ही जानी जाऊं। भले ही शुरूआत शौकिया तौर पर की हो मगर मैने जिस चीज़ में अपना समय, मन, मेहनत, आत्मा झोंक दी है उसे सिर्फ 'शौक' कैसे कह सकती हूं।‌ काश मैं लेखन को एक दिन कैरियर के तौर पर अपना सकूं। मैं आज भी किसी परिचित को नहीं बता पाती कि सुनो मैं लेखक हूं। पता नहीं क्यों। पर उम्मीद है कि कभी वो दिन भी आए जब मेरे बताने की जरूरत न पड़े।

फिलहाल लिख रही हूं। दो कहानियां जारी हैं, 'द राइटर्स ब्लॉक' और 'द्विजरक्ष : बहरूपिया की वापसी'
बहरूपिया का अगला सीजन तो बहुप्रतीक्षित था ही। सुखद आश्चर्य तो ये हुआ कि मेरी लिखी मर्डर मिस्ट्री भी पाठकों को इतनी पसंद आ रही है। पहली बार ही कुछ ऐसा लिखने की कोशिश की है।

आगे भी बस लिखना है और तो कुछ खास सोचा नहीं। बस हर बार कुछ नया, कुछ अनोखा ही लाना है। ढर्रे से अलग नया प्रयोग! होता भी है, आए दिन नई कहानियां जन्म लेते रहती हैं इस शैतानी खोपड़ी में और मैं यहां आप सबसे उन्हें रूबरू कराती रहती हूं। इन दोनों कहानियों के बाद शायद 'वृत्त : द सर्कल्स ऑफ डेथ' आएगी।
फिलहाल इतना ही। मिलती हूं अगले रविवार एक नए विषय के साथ।

वर्षा

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