pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

आइए, लेखकों से सीखें !

26 अक्टूबर 2023

प्रिय पाठक !

प्रतिलिपि मंच पर कुछ परिपक्व लेखकों ने अपना लेखन सफर प्रतिलिपि पर साझा किया है! उसकी एक छोटी सी झलक! आप लिंक पर क्लिक करके पूरा आर्टिकल पढ़ सकते हैं !

बीस साल बाद जब मांँ छोड़कर गयीं तो मन कुछ खाली-खाली सा महशूस करने लगा।भावनाओं का सैलाब मन में उमड़ घुमड़ रहा था और उनकी कमी को दिल के अहसा़सों को शब्दों में बांधने लगी।अन्दर का दुःख शब्दों का रूप ले बहने लगा। बेटे ने पर्सनल ब्लॉग बनाया पेज *कुछ अनकही *और फिर कभी-कभी अपने जज़्बात वहां लिखने लगी।पढ़ा भी जाता,तारीफ भी होती तो लिखने का ज़ज्बा अपनी राह पकड़ने लगा।” प्रीति शर्मा ,पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

प्रतिलिपि से मेरा परिचय टाइम्स ऑफ इंडिया ने कराया। वहां प्रायः एक लेख आया करता था जिसमें विभिन्न रोचक एप्लिकेशन्स के बारे में बताते हुए उनके बारे में सूचनाएं दी जाती थीं।यह 2017 की बात थी । वहां से प्रतिलिपि के बारे में जान कर मैंने उसे अपनी टेबलेट में डाउनलोड कर लिया।मैंने भी यहां अपना एकाउंट खोल लिया और तब से प्रतिलिपि में निरंतर बना हुआ हूं।” - कमल कान्त, पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

“धारावाहिक रचना  लिखने  के लिए प्लॉट या रूपरेखा कसी हुई होनी चाहिए...!बिना मतलब की अश्लीलता बिना मतलब की  बनावटीपन व अति   की कल्पनाशीलता  से हमेशा बचना चाहिए। यह धारावाहिक को कुछ समय के लिए तो लिए तो आकर्षक बना सकते हैं पर लंबे समय तक धारावाहिक  को  प्रभावी बनाकर नहीं रख सकते -डॉ. शैलजा श्रीवास्तव,पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

धीरे-धीरे मैंने अपनी लेखनी को  लघुकथा के दायरे से निकाल कहानियों का रूप देना शुरू किया।मेरी अधिकतर कहानियां या तो स्त्री विमर्श हैं या फिर समाज व परिवार के इर्द-गिर्द बुनी गई है।इसलिए पाठकों को यह कहानियां अपनी सी लगी और हर कहानी पर उन्होंने दिल खोलकर प्यार दिया !” -सरोज प्रजापति, पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

मेहनत करना मत छोड़िए। आज भले ही कुछ फॉलोअर्स है लेकिन कब ये हजारों और लाखो में हो जायेंगे पता नहीं चलेगा। मैं तो रीडर्स के मामले में सबसे खुशनसीब लेखिका रही हूं क्योंकि मेरे प्यारे रीडर्स हर वक्त मेरा साथ दिए है और मुझे प्रोत्साहित किए है।आज इतने दिनों से जब मैं हॉस्पिटल के चक्कर काट रही कहानियों के पार्ट थोड़ी देरी से जा रहे फिर भी न कॉमेंट में कमी आई न ही व्यू में।मेरे रीडर्स प्यार से मुझे कांडी कहते है क्योंकि मैं कहानियों में कांड लिखती हूं। लेकिन” प्रज्ञा मिश्रा , पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

आज जब मैं खुद को देखती हूं तो यकीन नहीं होता एक साधारण गृहिणी से एक लेखक बनने का सफर कितना कुछ सिखा गया। बहुत सारी मुश्किलें भी आईं लेकिन उन सबको पार करके आज मैं यहां तक पहुंची हूं क्योंकि अब मैं अपने लेखन के सफर को और अधिक ऊंचाइयों पर “ कोमल भालेश्वर, पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

लेखन का कीड़ा मुझे बचपन से काटता था।मैं हमेशा से खुद को और से अलग बेहद काल्पनिक और क्रिएटिव माइंड पाती थी।किताबें पढना का तो जैसे मुझे जुनून था।कहानियाँ सुनना या पढना,पेंटिंग,आर्ट एंड क्राफ्ट मुझे इन कामों में बहुत मजा आता था।कहानियाँ या उपन्यास पढ़ती या मूवी देखती मैं खुद को उन पात्रों के बीच पाती।कभी-कभी तो खुद की कल्पना किसी किरदार से करने लग जातीSr लक्षिता, पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें