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प्रतिलिपि अवार्ड्स 2021
16 फ़रवरी 2022

प्रतिलिपि हिन्दी के लेखक विनोद कुमार दवे के साथ एक छोटा सा वार्तालाप। 

नाम- विनोद कुमार दवे 

1. अपने बारे में कुछ बताएं

प्रतिलिपि पर नियमित तौर पर लिखने की कोशिश करता हूँ। कुछ रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। एक कहानी संग्रह 'अंतहीन सफ़र पर' इंक पब्लिकेशन से और एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। साहित्य पढ़ने की रुचि के साथ साथ अच्छी मूवीज देखना भी बहुत पसंद है। प्रसिद्ध होने से डर लगता है और गुमनाम रहना पसंद नहीं इसीलिए कोशिश करता हूँ लाइम-लाइट में आये बिना लिखता रहूं और यह दुनिया छोड़ने के बाद फेमस हो जाऊं (हंसते हुए)

 

2. आपकी लेखन यात्रा कब शुरु हुई?

सही से तो याद नहीं लेकिन साहित्य पढ़ते रहने की आदत तब से है जब से पढ़ना लिखना सीखा है। छोटी छोटी कहानियों से लेकर गूढ़ उपन्यासों के अध्ययन तक का सफ़र लेखन में भी साथ निभा रहा है। सातवीं या आठवीं कक्षा में पढ़ते समय से लेखन यात्रा प्रारंभ हुई थी, जिसे साहित्य के अध्ययन के साथ साथ ही आख़िरी सांस तक जारी रख सकूं, यहीं ईश्वर से प्रार्थना है।

 

3. प्रतिलिपि के साथ जुड़कर आपका अनुभव कैसा रहा?

निःसंदेह यह एक बेहतर अनुभव है। यद्यपि प्रकाशित पुस्तक को देखने का एक अलग ही आनंद होता है लेकिन वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए ऑनलाइन माध्यमों की अहमियत को ठुकराया नहीं जा सकता। और अब तो प्रतिलिपि भी कुछ चयनित पुस्तकों की हार्डकॉपी प्रकाशित करती है। कई बार नए लेखकों के मन में सवाल उठता है कि प्रतिलिपि ही क्यों? इसका उत्तर मैंने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से दिया है जिसे यहां पर दोहराना चाहूंगा। आख़िर मैं प्रतिलिपि पर क्यों लिखता हूँ? 1. प्रतिलिपि एक सार्वजनिक मंच है जहाँ हम अपने विचारों को पाठकों के समक्ष निर्बाध रूप से रख सकते हैं। यहां सेंसर होने का ख़तरा नहीं है अतः अपनी राय व्यक्त करने पर हम किसी तरह की कोई रोकटोक, दबाव आदि महसूस नहीं करते। अभिव्यक्ति की आज़ादी का पूरा सम्मान है इस मंच पर। स्वान्तः सुखाय लेखन के लिए यह बेहतरीन प्लेटफॉर्म है जहां किसी अन्य की काट छांट के बिना अपनी रचनात्मकता को मूल रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। 2. इसमें कोई दोराय नहीं है कि लेखन यश और पैसे के लिए भी किया जाता है। स्वान्तः सुखाय लेखन के साथ साथ यदि यश और पैसा भी मिले तो इस से बेहतर क्या बात हो सकती है। प्रतिलिपि समय समय पर कई उम्दा प्रतियोगिताएं आयोजित करवाती रहती है जिसमें भाग लेकर पुरस्कार के माध्यम से लेखन के इन तीनों उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है। पुरस्कारों के लिए लोकप्रियता और सम्पादकीय चयन, ये दोनों श्रेणियां होने के कारण हर तरह के लेखकों को उचित मंच मिलता है, चाहे वे गंभीर साहित्य के रचयिता हो या सरस मनोरंजक साहित्य के लेखक। 3. दिल्ली सभी के नसीब में नहीं हो सकती। हम जैसे दूर दराज के गांवों में रहने वाले लेखक जिनका साहित्य के क्षेत्र में कोई गॉडफादर नहीं हो, उनके लिए पत्र पत्रिकाओं, सेमिनारों, लेखक सम्मेलनों इत्यादि का हिस्सा बन पाना बहुत मुश्किल होता है। कुछ नए पुराने प्रकाशक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन बड़े प्रकाशकों की राजनीति का मुकाबला करना आसान नहीं। साहित्यिक गुटबाजी की तो बात न ही कि जाएं तो बेहतर है, क्योंकि इस बारे में जानते तो सभी है लेकिन ज़िक्र करके कोई साहित्यिक मठाधीशों के कोपभाजन का शिकार नहीं बनना चाहता। जोड़-तोड़, लेखक संघों की राजनीति, अपने से इतर विचारधारा के लेखकों को सिरे से नकार कर उन पर कीचड़ उछालना, इन सभी बातों ने साहित्य का नुकसान ही किया है। लोकप्रिय साहित्य को लुगदी साहित्य कहकर हाशिये पर धकेल दिया गया। गंभीर साहित्य के साथ साथ साफ़ सुथरे मनोरंजक साहित्य को भी प्रतिलिपि ने पाठकों के समक्ष सम्मानजनक रूप से पेश किया है। खैर इस तरह की राजनीति से दूर रहना ही बेहतर लगता है हमें तो। तो यदि गुट-निरपेक्ष लेखन करना हो तो प्रतिलिपि से बेहतर और क्या हो सकता है, जहाँ लेखक और पाठक तो एक दूसरे से जुड़ते है ही, लेखक और लेखकों के बीच भी संवाद स्थापित करने का यह अच्छा जरिया है। 4. प्रतिलिपि लिखने के साथ साथ सीखने का बेहतरीन माध्यम है। यहां समय समय पर निःशुल्क ऑनलाइन सेशन आयोजित होते हैं, जिनकी मदद से न सिर्फ़ लेखन बेहतर होता है, बल्कि एक प्रोफेशनल राइटर बनने के लिए भी मार्गदर्शन मिलता है। अच्छे लेखकों के साक्षात्कार से नए लेखकों को भी सीखने को मिलता है। प्रतिलिपि प्रतियोगता के विजेताओं का भी साक्षात्कार करती है जिस से नए रचनाकारों को प्रोत्साहन मिलता है। 5. पाठकों और लेखकों के बीच में सीधे संवाद के लिए भी प्रतिलिपि बेहतरीन माध्यम है। पाठक अपने पसंदीदा लेखक को लाइक व कमेंट के साथ साथ कॉइन्स के रूप में आर्थिक प्रोत्साहन भी दे सकते हैं। पैसे देकर किताबें छपवाने से क्या यह बेहतर नहीं है कि हम सीधे पाठकों की अदालत में पेश हो और पाठक ही न्याय करें हमारे लेखन का। 6. प्रतिलिपि की सबसे बेहतरीन खूबी है इसका ‘ऑल इन वन’ होना। प्रतिलिपि लेखन मंच के साथ साथ प्रिंटबुक, वेब सीरीज, कॉमिक्स, मोशन कॉमिक्स, शॉर्ट मूवी इत्यादि क्षेत्रों में भी बेहतरीन काम कर रही है। एक तरह से यह लेखकों व पाठकों के लिए ‘ऑल इन वन’ सर्व गुण संपन्न प्रकाशक है। 7. प्रतिलिपि पर लिखते हुए मैंने महसूस किया है कि प्रतिलिपि अपने लेखकों के हितों का पूरा ध्यान रखती है। प्रतिलिपि की एप्लीकेशन से कट-कॉपी-पेस्ट करके रचनाओं की चोरी करना नामुमकिन है। प्रतिलिपि किसी भी लेखक की रचना पर वेब सीरीज, प्रिंटबुक, कॉमिक्स इत्यादि बनाने से पहले लेखक से कॉन्ट्रैक्ट करती है और लेखक को पूरा श्रेय व मानदेय दिया जाता है। लेखकीय हितों की रक्षा करने का दायित्व प्रतिलिपि बखूबी निभा रही है। रचनाकारों को उनका सम्मान दिलाने का प्रतिलिपि का यह प्रयास प्रशंसनीय है। 8. एक एप्पलीकेशन के तौर पर देखा जाए तो प्रतिलिपि एक बेहतरीन एप्प है। यह यूजर फ़्रेंडली है, बहुत आसान और तेज। दिन-ब-दिन नए फीचर जुड़ने के साथ यह एप्लीकेशन और भी आकर्षक होती जा रही है। इसके साथ साथ कोई भी जिज्ञासा होने पर ई-मेल द्वारा सम्पर्क करने पर जवाब भी समय पर मिल जाता है। प्रतिलिपि टीम बहुत मेहनती है और जिस तेजी से काम हो रहा है, उस हिसाब से जल्द ही इसका नाम विश्व भर के अग्रणी प्रकाशकों में होगा। कुल मिलाकर लेखन और पाठन के लिए प्रतिलिपि एक बेहतरीन माध्यम है। मानव सभ्यता जैसे जैसे विकसित होती गई, अभिव्यक्ति के तरीके बदलते गए है। शिलालेख, भोजपत्र, ताम्रपत्र, अख़बार, पत्र पत्रिकाएं, पुस्तकें और फिर ईबुक... शाश्वत कुछ नहीं है, वक़्त के साथ परिवतर्न होता ही रहता है। प्रतिलिपि ने इस परिवर्तन को बखूबी समझा है और क्रियान्वित भी किया है। प्रतिलिपि टीम की मेहनत को सलाम और एक पाठक की ओर से उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं...

 

4. कहानियों को लेकर आपकी क्या सोच है?

कहानियां तब से पढ़ रहा हूँ, जब से पढ़ना सीखा है। लेकिन सच कहूँ तो दो तीन बार नहीं पढूं, तब तक ज़्यादातर कहानियां समझ में नहीं आती और इसका मुझे लाभ ही हुआ है। पसंदीदा कहानियों में ईदगाह, उसने कहा था, दोपहर का भोजन, हार की जीत, चीफ की दावत, काबुलीवाला, तिरिछ, दाज्यू आदि ऐसी रचनाएं हैं जिन के ज़िक्र के बिना शायद हिंदी साहित्य की बात आगे बढ़ ही नहीं सकती। विदेशी साहित्य में ज़्यादातर ओ. हेनरी, ऑस्कर वाइल्ड, मैक्सिम गोर्की, चेखव, अर्नेस्ट हेमिंग्वे आदि लेखकों की हिंदी में अनुदित कहानियां पढ़ी या सुनी है जो सर्वसुलभ है। कुछ मूवीज जिनकी कहानियों का ज़िक्र आवश्यक समझता हूं वे है, Life is beautiful, It's a wonderful life, One flew over cuckoo's nest, To kill a mocking bird, 12 years a slave, Hotel Rwanda आदि। यदि पसंदीदा पुस्तक पूछी जाएं तो मैं एना फ्रैंक की Diary of a young girl और मैक्सिम गोर्की की Mother का नाम सबसे पहले लूंगा। लेकिन इन सब के अलावा कई किताबें, कई कहानियां ऐसी है जो स्मृतियों के भार में कहीं दब गई है, समय समय पर जब भी वे कहानियां सामने आती है, उनको पढ़ना एक लाज़वाब अनुभव होता है जैसे स्कूल के दिनों की किताबों की कहानियां, जिनके शीर्षक भले ही याद नहीं है लेकिन कहानियां अवचेतन में तैरती रहती है। किताबों की भूली बिसरी कुछ यादें, सफ़र में चुप बैठा वह व्यक्ति जो अपने परिवार के किसी सदस्य की मौत को याद कर फफक पड़ता है, बच्चा जो अपनी माँ की मौत के ग़म में सब कुछ भूल गया है और बार बार पुराने घर लौट आता है, क्रिसमस की रात पर ठिठुरता हुआ बालक या बर्फ़ पर फिसलता हुआ बालक जो लड़की के कान में फुसफुसाते हुए आई लव यू कहता है जैसे हवा की वजह से उस लड़की के कान बज रहे हैं, ढेर सारी कहानियां है जो अवचेतन में दब गई है और गाहे बगाहे याद आ जाती है। सच में कहानियां तब से है जब से सृष्टि की शुरुआत हुई या शायद तब भी थी जब केवल शून्य था।

 

5. आप किस विषय पर सबसे ज्यादा लिखना पसंद करते हैं, जैसे- हॉरर, प्रेम, सामाजिक, प्रेरणा आदि।

समाज के प्रति एक लेखक के उत्तरदायित्व को समझते हुए सामाजिक मुद्दों पर लिखना सबसे अधिक पसंद है। इसके अलावा प्रयोग के तौर पर हॉरर और आपराधिक कहानियों का लेखन भी किया है, लेकिन इसके सहारे भी एक अप्रत्यक्ष किंतु सार्थक संदेश देने की कोशिश करता हूँ, जो प्रेरणादायक कहानियों की तरह स्पष्ट नहीं हो, किंतु पाठकों के अवचेतन मन में असर कर सके।

 

6. नव लेखकों को आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?

नए लेखकों को यही कहना चाहूंगा कि ख़ूब पढ़ें। पढ़ते रहने की आदत हमें एक बेहतर लेखक के साथ साथ उम्दा इंसान भी बनाती है। ज़्यादा पढ़ें, कम लिखें। ख़ुद को समाज से श्रेष्ठ न समझें, बुद्धिजीवी होने का अहंकार न हो। लेखकों के पास कोई सुर्खाब के पर नहीं होते। लेखक भी एक आम आदमी ही है और लेखन जैसे महत्वपूर्ण संवेदनशील कार्य से जुड़े होने के कारण लेखक को तो आम से भी ज़्यादा आम होना चाहिए। कतार में खड़े अंतिम आदमी के प्रति अपने दायित्व को समझे और प्रेरणास्पद बातों को लिखने के साथ साथ जिये भी। इसके अलावा खास तौर पर अपने अनुभव के आधार पर कहूंगा कि पैसे देकर छपास का रोग न पालें। कई नए प्रकाशक अच्छे लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए निःशुल्क प्रकाशन करते हैं, उनके साथ जुड़ने की कोशिश करें। और प्रतिलिपि तो है ही नव लेखकों के साथ।

 

7. आप अपने पाठकों के लिए क्या कहना चाहेंगे?

प्रतिलिपि के पाठकों से क्षमा चाहूंगा कि कई बार नई रचना प्रस्तुत करने में देर हो जाती है। लेकिन एक लेखक भी समाजिक प्राणी ही होता है। और लेखक होने से पहले एक अच्छा इंसान बनने की सदा ही कोशिश करता हूँ। इन सब में कई बार लेखन पीछे छूट जाता है लेकिन आत्म संतुष्टि रहती है कि अपने परिवार, आस पास के लोगों, समाज के लिए कुछ किया। और यह सब न करके लेखन ही करते रहे तो वह लिखा भी किस काम का? भावुक पाठकों से एक और विनती है कि लेखकों को बड़ी हस्ती न समझें, हम सब एक इकाई है और हमारा पहला उद्देश्य कुछ सार्थक करना है, फिर नम्बर आता है सार्थक लिखने का।

 

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