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प्रतिलिपि के मंच पर आत्मीय स्वजन एवं हिन्दी साहित्यकार श्री अरुण शर्मा ' अनंत ' / A short interview of Hindi writer Arun Sharma ' Anant'
07 फेब्रुवारी 2015

 

 

नाम: अरुन शर्मा अनन्त

जन्मदिवस: 10-जनवरी-1984

मूलस्थान: नई-दिल्ली

शैक्षिक उपाधि: स्नातक

 

1. स्वभाव :

परिस्थितियों की माँग पर निर्भर करता है.

 

2. लोकप्रिय व्‍यक्ति ? क्यों ?

स्वामी विवेकानंद जी क्यों का प्रश्न ही नहीं उठता.

 

3. साहित्य प्रेरणा :

साहित्य मुझे बाल्यावस्था से ही प्रिय रहा है, हिंदी के प्रति मेरा प्रेम सभी विषयों से अधिक रहा. कविताएँ जब हृदय को स्पर्श करती हैं तो कहीं न कहीं हमारी संवेदनाओं को अभिव्यक्ति करने हेतु प्रेरित करती हैं.  

 

4. आपके लिये साहित्य की परिभाषा :

साहित्य को परिभाषित करना बहुत कठिन है, जहाँ तक मैं समझता हूँ साहित्य एक साधना है. साहित्य समय, अध्ययन, चिंतन और मनन से प्राप्त होता है, साहित्य की प्राप्ति कदापि सरल नहीं इसकी प्राप्ति केवल एक साधक को ही होती है. साहित्य सजगता एवं गंभीरता की माँग करता है.   

 

5. जीवन का सबसे खुशी का पल :

३-जुलाई-२०११ मेरी जीवन का सबसे अधिक ख़ुशी का पल जब मेरी पुत्री का जन्म हुआ. ऐसा सुन्दर सुखद अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था.

 

6. प्रकाशित रचनायें :

१. पुष्प पाँखुरी (साझा कविता संग्रह)

२. गुलमोहर (साझा कविता संग्रह)

३. काव्य सुगंध भाग-२ (साझा कविता संग्रह)

संपादन:

  1. “सारांश समय का” (80 कवियों की कविताओं का संकलन)
  2. “शब्द व्यंजना” मासिक ई पत्रिका (www.shabdvyanjana.com)

 

7. पीके जैसी फिल्मों के बारे मे आपका क्या मानना है ?

मैं फ़िल्में बहुत ही कम देखता हूँ मुझे फिल्मों में इतनी रुचि नहीं, जहाँ तक फिल्मों के बारे में मेरा मानना है कुछ फ़िल्में केवल मनोरंजन के लिए होती हैं और कुछ फ़िल्में हमें कुछ सिखा जाती हैं. यदि पीके जैसी फिल्मों के बारे में बात करें तो यह फिल्म समाज में फैला अन्धविश्वास को सामने लाने का कार्य किया. कुछ धर्म अनुयायी इसे मुद्दा बनायेंगे कुछ इससे कुछ सीख लेंगे अपनी अपनी सोच पर निर्भर करता है.

 

8. प्रिय पुस्तक/रचनाकार :

“लहर” जय शंकर प्रसाद, “मधुशाला” हरिवंशराय बच्चन, “गीत कुञ्ज” सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, “नीरज की पाती” गोपालदास नीरज. इनके अलावा तमाम ऐसे रचनाकार/ग़ज़लगो और उनकी रचनाएँ/गज़लें हैं जो हृदय में बसी हुई हैं.

 

9. सबसे ज्यादा डर किससे अथवा किस बात से लगता है :

जीवन में सबसे अधिक डर अपना मान सम्मान खोने से लगता है, मृत्यु तो सत्य है सभी को आती है मुझे भी आएगी मृत्यु से भय कैसा. किन्तु आत्म सम्मान खोने से व्यक्ति जीवित होते हुए भी मरे हुए के समान होता है.

 

10. जिंदगी से क्या चाहते हैं : जिंदगी मुझे एक बेहतर इंसान बनाये, मेरे भीतर का कवि हृदय जीवन के अंतिम समय तक जीवित रहे जिंदगी से केवल इतनी ही चाहत है. बाकी सुख दे या दुख दोनों का खुले हृदय से स्वागत.

 

प्रतिलिपि के विषय में आपके विचार :

प्रतिलिपि साहित्यकारों एवं पाठकों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का एक उत्तम मंच है. प्रतिलिपि ने अपने प्रारंभिक पथ पर सफल रहा है, प्रतिलिपि को यूँ ही सफलताएँ प्राप्त होती रहें. मैं प्रतिलिपि को बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ.  

 

पाठकों के लिये संदेश :

एक साहित्यकार के लिए पाठक ही उसका मनोबल एवं उर्जा का श्रोत होता है. अधिक से अधिक मात्रा में पाठक प्रतिलिपि से जुड़ें एवं साहित्यिक रचनाओं का आनंद उठायें प्रतिलिपि को सफल बनायें यही निवेदन करता हूँ.      

 

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