नाम: दीक्षित दिव्यांशु कुमार
जन्मदिवस: 05-07-1993
मूलस्थान: ग्राम व् पोस्ट भीखमपुर, जिला – लखीमपुर खीरी, उ०प्र० 262805
शैक्षिक उपाधि: एम्.ए. भूगोल , बी.एच.यू.
1. स्वभाव :
भावनात्मक एवं सामाजिक
2. साहित्य प्रेरणा :
श्री सुरेश कुमार शुक्ल ‘सन्देश’ जी द्वारा साहित्य की प्रेरणा प्राप्त हुई | बड़े भैया श्री शुधांशु जी ने सदैव प्रेरित किया | मित्रों का प्रोत्साहन एव सहयोग अविस्मरणीय है, जिनमें जितेन्द्र, दीप, अंजनी, पलाश आदि प्रमुख हैं |
3. पसंदीदा व्यंजन :
अभी तक ये तय नहीं कर पाया हूँ कि मेरा पसंदीदा व्यंजन क्या है | हाँ ये अवश्य पता है कि क्या नहीं पसंद है | बाकी परिस्थिति अनुसार सभी व्यंजन पसंद है |
4. अगर अपनी जिंदगी फिर से जीने का मौका मिले तो क्या बदलना चाहेंगे?
अभी इसी जिंदगी का बड़ा सा हिस्सा (संभावित) शेष है, जो बदलना है इसी में बदला जा सकता है | सबसे पहले अपने अन्दर, मानवीय प्रकृति के अनुरूप व्याप्त इर्ष्या, घृणा, द्वेष आदि को बदलना पसंद करूँगा | इस बदलाव के बाद बड़े बदलाव आपेक्षित है |
5. आपके बचपन का सबसे यादगार किस्सा क्या है?
एक बार अलमारी में रखे कुछ सिक्के कहीं गुम हो गए | मैं अपने तीन भाइयों में सबसे छोटा हूँ | मुझ पर ही शक हुआ की मैंने चोरी की है | लेकिन माँ के पूछने पर मैंने मना कर दिया कि मैंने कोई पैसे नहीं लिए और सच में नहीं लिए थे | शाम के समय माँ लगभग रोज कहानी सुनाती थी | उस दिन भी मैंने कहा पर उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि जब तक सही नहीं बोलोगे की पैसे किसने लिए कहानी नहीं सुनाऊंगी | कहानी सुनने के लिए मैंने कह दिया की हाँ पैसे मैंने ही लिए थे और जब दुकान पर जा रहा था तो रास्ते में घास में गिर गए | माँ ने बड़े भैया के साथ भेजा कि दिखाओ जाकर पैसे कहाँ पर गिरे | मैं भैया के साथ गया और एक जगह दिखा दी थोड़ी देर ढूंढा फिर वापस आ गए | तब तक माँ गुस्से में बैठी थी और मेरे पहुंचते ही ये कहकर की चोरी क्यूँ की ? मुझे पीट दिया | उसके बाद मैंने बताया कि मैंने पैसे सच में नहीं लिए बल्कि कहानी सुनने के लिए झूठ बोला था | अब माँ भी दुःखी थी |
6. वो कौन सी तीन चीज़ें हैं जिनके बिना आपका जीवन अधूरा है?
साहित्य, लोकप्रियता और पेंटिंग
7. जीवन का सबसे खुशी का पल :
सबसे ख़ुशी का पल निर्धारित करना थोड़ा सा कठिन है क्योंकि हर ख़ुशी का पल उस समय का सबसे ख़ुशी का पल लगता है | उन्ही में से एक पल है जब पहली बार ‘अंतर्ज्योति’ और ‘राष्ट्रधर्म’ में कवितायेँ प्रकाशित हुई थी | बहुत ख़ुशी हुई थी |
8. प्रकाशित रचनायें :
कवितायेँ – (i) जय-जय गंगे ! (ii) मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला (iii) मैं भारत हूँ (iv) आशियाँ रेत का (v) बस उनके ही गीत लिख दिए (vi) सोंचो (vii) (viii) हे विहाग! उड़ो तुम उड़ते जाओ (ix) एक बहस (x) दृग (xi) अंतर्ज्योति
कहानी – (i) श्याम बाबू
9. सबसे ज्यादा डर किससे अथवा किस बात से लगता है?
मेरे लिए सबसे ज्यादा डर की बात झगड़ा और अपमान है !
10. जिंदगी से क्या चाहते हैं:
प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता
प्रतिलिपि के विषय में आपके विचार:
प्रतिलिपि कवियों एवं लेखकों के लिए अतुलनीय मंच है | निवेदित रचनाकारों का प्रोत्साहन विशेष उल्लेखनीय है | आशा है कि प्रतिलिपि इसी प्रकार साहित्य मार्ग पर प्रखर होती रहेगी और नवोदित प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करती रहेगी |
पाठकों के लिये संदेश:
पाठक किसी भी लेखक की साहित्य साधना को प्रखर करने के प्रमुख कारक होते है | पाठकों से यही निवेदन है कि कोई भी रचना किसी भी लेखक की पसंद आने पर फीडबैक अवश्य दे | क्योंकि आपका एक कदम लेखक में आवश्यक सुधार कर सकता है |
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