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मेरी अवंतिका

4.8
514283

11 दिसम्बर 2014, लॉ फर्म दिल्ली, सुबह के 10 बजे अवंतिका अपने ऑफिस पहुँची।कनॉट प्लेस में स्थित उसके ऑफिस में सुबह साढ़े नौ बजे से अफ़रा-तफ़री मची रहती है। उसकी एक वाज़िब वज़ह अवंतिका खुद है, उसके ऑफिस ...

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अभिधा शर्मा
4.8

शर्मा विला, ई-5, कोह-ए-फ़िज़ा रोड, भोपाल, मध्य प्रदेश। शर्मा विला, याने कि मेरा घर। अब आप सोचेंगे कि मैं कौन? मैं पीयूष, पीयूष शर्मा। अब आपके मन में तुरंत एक बात कौंध गयी होगी कि दो-दो बार पीयूष ...

लेखक के बारे में
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अभिधा शर्मा

प्रथम उपन्यास- कैनवास पर बिखरे यादों के रंग भावना प्रकाशन, दिल्ली(फरवरी 2015) द्वितीय उपन्यास- मेरी अवंतिका भावना प्रकाशन,दिल्ली (जनवरी 2016)

समीक्षा
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  • author
    Chhaya Verma
    26 जुलाई 2018
    अभिधा मैम; मैने पिछले वर्ष 'मेरी अवन्तिका' पढ़ी थी। तब से अब तक इस रचना को अपने हृदय और मस्तिष्क से नहीं निकाल पायी इसलिए एकबार फिर पढ़ने की इच्छा हुई...अध्याय 43 तक पढ़ लिया है। जीवन के उतार-चढ़ाव, प्रेम, स्नेह, मित्रता, सुख-दुख, हर्षोल्लास, श्रंगार, हास्य, व्यंग्य से और अनेक भावनाओं से सुसज्जित एक हृदयस्पर्शी उपन्यास हे 'मेरी अवन्तिका'। इसको पढ़ते हुए होंठो पर मुस्कान भी तैर जाती है, आँखे भी छलक जाती है..और यही उपक्रम निरन्तर चलता रहता है। अभिधा मैम; एसी अद्भुत और जीवन्त रचना के लिए आपको मेरे हृदय से बहुत सम्मान और धन्यवाद है। जीवन भर संघर्ष करना, इतना इन्तज़ार उस पर इतना धैर्य, इतना दर्द सहने के बाद पियूष और अवन्तिका के मिलन पर खुशी से आँखे भर आती है । लेकिन इस रचना का अन्त बहुत दुःखद है मैम;.. अवन्तिका और पियूष का जीवन भर के लिए एक-दूसरे के साथ नही रह पाना, अवन्तिका की मौत, जीवन भर के लिए पियूष का अकेला रह जाना, अवन्तिका के बिना पियूष क्या है... सच मे मैम ये अन्त बहुत रुलाता है आँसू नहीं रुकते.. इतना दुःखद अन्त! क्यों मैम? क्या कोई और अन्त नहीं हो सकता है इस रचना का... बस हो सके तो इसका अन्त बदल दीजिए मैम । एकबार फिर से आपको मेरे हृदय की गहराइयों से सम्मान और धन्यवाद।
  • author
    VivEk Mishra
    24 अप्रैल 2018
    "मेरी अवंतिका '' इस रचना से. अच्छी रचना ओर कोई हो सकती है क्या ?? इससे अच्छा ओर कोई क्या लिखेगा , अवंतिका मेरे जीवन का आज़ बहोत बड़ा हिस्सा बन चुकी है पियूस ने जो दर्द सहा है वो आज मुझे लगता है की मानो जैसे मैं खुद उसको जी रहा हु पर आज मैने एक परचे मे लिख के रख दिया की काश अवंतिका हमेशा पियूस के साथ होती ओर इसके साथ ही मैं शांत हो गया हु अभीधा जी मेरे पास शब्द नहीं है आपकी " मेरी अवंतिका " आज कई दिलो मे राज कर रही है ज़िनमे मैं भी शामिल हु 🙏
  • author
    आकाश **अनंत**
    09 अगस्त 2018
    मेरी अवन्तिका ... अभिधा जी शब्द नही है मेरे पास कि कुछ लिखूं... गहन चिंतन में हूँ इसे पढ़ने के बाद... आपने जिस तरह अवन्तिका के किरदार को जीवंत किया है, कभी लगा ही नही की ये कोई कहानी है, ऐसा लग रहा जैसे सब कुछ आंखों के सामने घटित हुआ हो, एक रिश्ता सा जुड़ गया है अवन्तिका से और आज जब वह नही है तो उसकी कमी महसूस कर पा रहा हूं... मेरी अवन्तिका का एक अंश हमेशा जिंदा रहेगा मेरे अंदर.... आपकी रचना सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या यही लोकतंत्र है, क्या यही वो क़ानून है जिसे हमारी रक्षा के लिए बनाया गया है, एक लेखक का दायित्व होता है समाज को आईना दिखाना, आपके इस साहसिक कदम के लिए आप बधाई की पात्र है ... हमारी कानून व्यवस्था किसी मकड़ी के जाल की तरह है जिसमे छोटे मोटे कीड़े तो आसानी से फँस जाते है, पर जब कोई बड़ा कीड़ा आता है तो वह अपने साथ पूरा जाल को ही लेकर उड़ जाता है ...आपने जिस वास्तविक घटना का वर्णन किया है उससे हम सब वाकिफ़ है .... अंत मे अवंतिका का पीयूष को छोड़कर चला जाना बहुत दुखद लगा, पर मैं समझ सकता हूँ आपको कितनी तकलीफ हुई होगी ऐसा अंत लिखने में एक लेखक के लिए उसके किरदार अपने बच्चों की तरह होते है ... पीयूष के लिये हमदर्दी है उसके दर्द को महसूस कर सकता हूँ जब कोई अपना बिछड़ जाता है तो ... कहते है वक़्त हर जख्म भर देता है पर कुछ जख्म ऐसे होते है जो कभी नही भरते, बस वक़्त उनके साथ जीना सीखा देता है, अब पीयूष के पास अवंतिका की सुनहरी यादे है जीने के लिए पर ये जिंदगी का सफर बहुत लंबा हो जाता है जब हमसफ़र छूट जाता है... आप बस ऐसे ही लिखते रहिये माँ सरस्वती की कृपा है आपके ऊपर, अपनी कल्पना को जीवंत करना कोई आपसे सीखे... अंत मे बस आपसे एक विनती करना चाहूंगा, अगर आप अवंतिका की डायरी के कुछ पन्ने लिख पाएं तो मन को थोड़ा सुकून मिल जाये, बस यही सोचता रहता हूँ कि क्या लिखा होगा मेरी अवतू ने अपने साहिब के बारे में.....
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    Chhaya Verma
    26 जुलाई 2018
    अभिधा मैम; मैने पिछले वर्ष 'मेरी अवन्तिका' पढ़ी थी। तब से अब तक इस रचना को अपने हृदय और मस्तिष्क से नहीं निकाल पायी इसलिए एकबार फिर पढ़ने की इच्छा हुई...अध्याय 43 तक पढ़ लिया है। जीवन के उतार-चढ़ाव, प्रेम, स्नेह, मित्रता, सुख-दुख, हर्षोल्लास, श्रंगार, हास्य, व्यंग्य से और अनेक भावनाओं से सुसज्जित एक हृदयस्पर्शी उपन्यास हे 'मेरी अवन्तिका'। इसको पढ़ते हुए होंठो पर मुस्कान भी तैर जाती है, आँखे भी छलक जाती है..और यही उपक्रम निरन्तर चलता रहता है। अभिधा मैम; एसी अद्भुत और जीवन्त रचना के लिए आपको मेरे हृदय से बहुत सम्मान और धन्यवाद है। जीवन भर संघर्ष करना, इतना इन्तज़ार उस पर इतना धैर्य, इतना दर्द सहने के बाद पियूष और अवन्तिका के मिलन पर खुशी से आँखे भर आती है । लेकिन इस रचना का अन्त बहुत दुःखद है मैम;.. अवन्तिका और पियूष का जीवन भर के लिए एक-दूसरे के साथ नही रह पाना, अवन्तिका की मौत, जीवन भर के लिए पियूष का अकेला रह जाना, अवन्तिका के बिना पियूष क्या है... सच मे मैम ये अन्त बहुत रुलाता है आँसू नहीं रुकते.. इतना दुःखद अन्त! क्यों मैम? क्या कोई और अन्त नहीं हो सकता है इस रचना का... बस हो सके तो इसका अन्त बदल दीजिए मैम । एकबार फिर से आपको मेरे हृदय की गहराइयों से सम्मान और धन्यवाद।
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    VivEk Mishra
    24 अप्रैल 2018
    "मेरी अवंतिका '' इस रचना से. अच्छी रचना ओर कोई हो सकती है क्या ?? इससे अच्छा ओर कोई क्या लिखेगा , अवंतिका मेरे जीवन का आज़ बहोत बड़ा हिस्सा बन चुकी है पियूस ने जो दर्द सहा है वो आज मुझे लगता है की मानो जैसे मैं खुद उसको जी रहा हु पर आज मैने एक परचे मे लिख के रख दिया की काश अवंतिका हमेशा पियूस के साथ होती ओर इसके साथ ही मैं शांत हो गया हु अभीधा जी मेरे पास शब्द नहीं है आपकी " मेरी अवंतिका " आज कई दिलो मे राज कर रही है ज़िनमे मैं भी शामिल हु 🙏
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    आकाश **अनंत**
    09 अगस्त 2018
    मेरी अवन्तिका ... अभिधा जी शब्द नही है मेरे पास कि कुछ लिखूं... गहन चिंतन में हूँ इसे पढ़ने के बाद... आपने जिस तरह अवन्तिका के किरदार को जीवंत किया है, कभी लगा ही नही की ये कोई कहानी है, ऐसा लग रहा जैसे सब कुछ आंखों के सामने घटित हुआ हो, एक रिश्ता सा जुड़ गया है अवन्तिका से और आज जब वह नही है तो उसकी कमी महसूस कर पा रहा हूं... मेरी अवन्तिका का एक अंश हमेशा जिंदा रहेगा मेरे अंदर.... आपकी रचना सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या यही लोकतंत्र है, क्या यही वो क़ानून है जिसे हमारी रक्षा के लिए बनाया गया है, एक लेखक का दायित्व होता है समाज को आईना दिखाना, आपके इस साहसिक कदम के लिए आप बधाई की पात्र है ... हमारी कानून व्यवस्था किसी मकड़ी के जाल की तरह है जिसमे छोटे मोटे कीड़े तो आसानी से फँस जाते है, पर जब कोई बड़ा कीड़ा आता है तो वह अपने साथ पूरा जाल को ही लेकर उड़ जाता है ...आपने जिस वास्तविक घटना का वर्णन किया है उससे हम सब वाकिफ़ है .... अंत मे अवंतिका का पीयूष को छोड़कर चला जाना बहुत दुखद लगा, पर मैं समझ सकता हूँ आपको कितनी तकलीफ हुई होगी ऐसा अंत लिखने में एक लेखक के लिए उसके किरदार अपने बच्चों की तरह होते है ... पीयूष के लिये हमदर्दी है उसके दर्द को महसूस कर सकता हूँ जब कोई अपना बिछड़ जाता है तो ... कहते है वक़्त हर जख्म भर देता है पर कुछ जख्म ऐसे होते है जो कभी नही भरते, बस वक़्त उनके साथ जीना सीखा देता है, अब पीयूष के पास अवंतिका की सुनहरी यादे है जीने के लिए पर ये जिंदगी का सफर बहुत लंबा हो जाता है जब हमसफ़र छूट जाता है... आप बस ऐसे ही लिखते रहिये माँ सरस्वती की कृपा है आपके ऊपर, अपनी कल्पना को जीवंत करना कोई आपसे सीखे... अंत मे बस आपसे एक विनती करना चाहूंगा, अगर आप अवंतिका की डायरी के कुछ पन्ने लिख पाएं तो मन को थोड़ा सुकून मिल जाये, बस यही सोचता रहता हूँ कि क्या लिखा होगा मेरी अवतू ने अपने साहिब के बारे में.....