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काठी

4.6
3992

मध्य हिमालय की एक पहाड़ी प्रेम कथा।

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लेखक के बारे में
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मिहिर

क्या तेरी हस्ती यही है, बुलबुले की जात रे ! क्या तेरा अस्तित्व इतना, नींद का उन्माद रे ?

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pankaj Pokhriyal
    06 दिसम्बर 2017
    कहानी में बीच बीच में पहाड़ी शब्दवाली का प्रयोग,माधो का निश्छल प्रेम,गौरा की वेदना,माँ की बेबसी,बहुत गहराई तक मन को झकझोर देते हैँ।पाठक कहानी की लय में अपने को बहते हुए छोड़ देता है।काठी अन्तर्मन् को उद्देलित करती मार्मिक कहानी है।लेखक को मेरी तरफ से बधाई और भविष्य में और भी अच्छी कहानियों की अपेक्षा हेतु शुभकामनाएं।
  • author
    Paakhi Jain
    19 अगस्त 2019
    मार्मिकता ,शाश्वत् प्रेम की सटीक परिभाषा इससे अलहदा हो ही न सकती।
  • author
    13 मार्च 2018
    Bahut Accha h आपका ye kahani पढ़ kr Accha lga
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    Pankaj Pokhriyal
    06 दिसम्बर 2017
    कहानी में बीच बीच में पहाड़ी शब्दवाली का प्रयोग,माधो का निश्छल प्रेम,गौरा की वेदना,माँ की बेबसी,बहुत गहराई तक मन को झकझोर देते हैँ।पाठक कहानी की लय में अपने को बहते हुए छोड़ देता है।काठी अन्तर्मन् को उद्देलित करती मार्मिक कहानी है।लेखक को मेरी तरफ से बधाई और भविष्य में और भी अच्छी कहानियों की अपेक्षा हेतु शुभकामनाएं।
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    Paakhi Jain
    19 अगस्त 2019
    मार्मिकता ,शाश्वत् प्रेम की सटीक परिभाषा इससे अलहदा हो ही न सकती।
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    13 मार्च 2018
    Bahut Accha h आपका ye kahani पढ़ kr Accha lga