pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

हिचकियाँ

4.5
29450

पू रे 14 साल 6 महीने 18 दिन 13 घंटे 39 मिनट बाद कदम रखा था माधव ने इस शहर में, जो कभी उसका अपना हुआ करता था. फुआ, मासी, नानी आदि के घर जाने की वजह से जब कभी अपने इस शहर के साये तले उसकी आंख ना ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
धीरज झा

नाम धीरज झा, काम - स्वछंद लेखन (खास कर कहानियां लिखना), खुद की वो बुरी आदत जो सबसे अच्छी लगती है मुझे वो है चोरी करना, लोगों के अहसास को चुरा कर कहानी का रूप दे देना अच्छा लगता है मुझे....किसी का दुःख, किसी की ख़ुशी, अगर मेरी वजह से लोगों तक पहुँच जाये तो बुरा ही क्या है इसमें :) .....इसी आदत ने मुझसे एक कहानी संग्रह लिखवा दिया जिसका नाम है सीट नं 48.... जी ये वही सीट नं 48 कहानी है जिसने मुझे प्रतिलिपि पर पहचान दी... इसके तीन भाग प्रतिलिपि पर हैं और चौथा और अंतिम भाग मेरे द्वारा इसी शीर्षक के साथ लिखी गयी किताब में....आप सब की वजह से हूँ इसीलिए कोशिश करूँगा कि आप सबका साथ हमेशा बना रहे... फेसबुक पर जुड़ें :- https://www.facebook.com/profile.php?id=100030711603945

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Shikha Shrivastava
    05 दिसम्बर 2018
    कहानी बहुत अच्छी लगी। पर काल्पनिक है असल जिंदगी में ऐसे किरदार मिलना नामुमकिन है खास कर मुक्ता के पति अभय जैसे।
  • author
    Yogendra Singh
    02 दिसम्बर 2018
    कथा बहुत अच्छी लिखी गई है। कथानक भी अच्छा है। पोस्ट करने से पहले संपादन अवश्य किया करें। एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
  • author
    Annapurna Mishra
    20 मार्च 2020
    कहानी तो ठीक है लेकिन भगवान न करे किसी पुरुष को ऐसी पत्नी मिले कभी--भले ही व्यक्ति उम्र भर कुंवारा भले रह जाये।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Shikha Shrivastava
    05 दिसम्बर 2018
    कहानी बहुत अच्छी लगी। पर काल्पनिक है असल जिंदगी में ऐसे किरदार मिलना नामुमकिन है खास कर मुक्ता के पति अभय जैसे।
  • author
    Yogendra Singh
    02 दिसम्बर 2018
    कथा बहुत अच्छी लिखी गई है। कथानक भी अच्छा है। पोस्ट करने से पहले संपादन अवश्य किया करें। एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
  • author
    Annapurna Mishra
    20 मार्च 2020
    कहानी तो ठीक है लेकिन भगवान न करे किसी पुरुष को ऐसी पत्नी मिले कभी--भले ही व्यक्ति उम्र भर कुंवारा भले रह जाये।