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हिन्दी

बोध

4.7
10459

पंडित चंद्रधर ने अपर प्राइमरी में मुदर्रिसी तो कर ली थी, किन्तु सदा पछताया करते थे कि कहाँ से इस जंजाल में आ फँसे। यदि किसी अन्य विभाग में नौकर होते, तो अब तक हाथ में चार पैसे होते, आराम से जीवन ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • author
    Prakash Srivastava
    09 മെയ്‌ 2018
    यह कहानी आज से पचास साठ साल पहले की है जब अध्यापक का समाज में बड़ा मान था और अध्यापक भी अपने शिष्यों को संतानवत मानते थे। अब न वैसे अध्यापक और न ही वैसे श्रृद्धा रखने वाले शिष्य, सब काल के परिवर्तन का शिकार हो गया। बहुत ही अच्छी व प्ररेणा दायक कहानी। लेखक की कलम पर पकड़ उसे सिद्धहस्त बनाती है।
  • author
    vijay Lakshmi
    31 ജനുവരി 2019
    समाज में अध्यापक का पद सर्वोच्च है और होना भी चाहिए। मुन्शी प्रेम चन्द जी की यह रचना बहुत ही भावपूर्ण है और अध्यापकों को समर्पित है।
  • author
    Aasim Beg "मिर्ज़ा"
    09 ഫെബ്രുവരി 2019
    मुंशी प्रेमचंद वास्तव में तुम भारतीय सनातनी होने की पहचान थे, शायद तुम्हारी मृत्यु के साथ ही भारत में साहित्य के क्षेत्र में सनातन विचारधारा का अंत हो गया।
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    Prakash Srivastava
    09 മെയ്‌ 2018
    यह कहानी आज से पचास साठ साल पहले की है जब अध्यापक का समाज में बड़ा मान था और अध्यापक भी अपने शिष्यों को संतानवत मानते थे। अब न वैसे अध्यापक और न ही वैसे श्रृद्धा रखने वाले शिष्य, सब काल के परिवर्तन का शिकार हो गया। बहुत ही अच्छी व प्ररेणा दायक कहानी। लेखक की कलम पर पकड़ उसे सिद्धहस्त बनाती है।
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    vijay Lakshmi
    31 ജനുവരി 2019
    समाज में अध्यापक का पद सर्वोच्च है और होना भी चाहिए। मुन्शी प्रेम चन्द जी की यह रचना बहुत ही भावपूर्ण है और अध्यापकों को समर्पित है।
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    Aasim Beg "मिर्ज़ा"
    09 ഫെബ്രുവരി 2019
    मुंशी प्रेमचंद वास्तव में तुम भारतीय सनातनी होने की पहचान थे, शायद तुम्हारी मृत्यु के साथ ही भारत में साहित्य के क्षेत्र में सनातन विचारधारा का अंत हो गया।