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शक का कीड़ा (व्यंग्य)

4.2
4016

विशेषताएं 1- इस कीड़े को एक फूटी आँख भी नहीं नसीब होती है किंतु यह जिस पोषक के मस्तिष्क में सक्रिय रहता है वह इस खुशफहमी को प्राप्त होता है कि उसकी सहस्रों आँखें हैं और वह सब कुछ देख रहा है। यहाँ ...

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लेखक के बारे में

जहां से शुरू होता हूँ वहां ख़त्म नहीं होता। ख़त्म वहां पर होना चाहता हूँ जहां से शुरू होने की कोई गुंजायश न बचे।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    saurabh
    29 जनवरी 2017
    ati uttam
  • author
    rahul nimesh
    23 मार्च 2017
    धन्य हो
  • author
    Akash Tomar
    03 जनवरी 2017
    Ati sundar
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    saurabh
    29 जनवरी 2017
    ati uttam
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    rahul nimesh
    23 मार्च 2017
    धन्य हो
  • author
    Akash Tomar
    03 जनवरी 2017
    Ati sundar