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'अब आप यहां क्या करेंगे? मेरे साथ ही चलिए पिताजी। आप हमारे साथ परिवार में रहेंगे, बच्चे हैं,सविता है, घर की व्यवस्था है। यहां अकेले में आपको दिक्कत होगी।' 'नहीं बेटा! यहां कोई अकेला नहींहोता। इस देश ...

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लेखक के बारे में
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कमल कुमार

जन्म-स्थान अंबाला (हरियाणा) कार्यक्षेत्र ःदिल्ली विष्वविद्यालय के जीसस एंड मेरी काॅलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और दिल्ली विष्वविद्यालय के दक्षिण परिसर में गैस्ट फैकल्टी के साथ। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, षिमला में रिसर्च स्कोलर। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विष्वविद्यालय में आवासीय लेखक प्रोफेसर इस समय दिल्ली विष्वविद्यालय और अन्य विष्वविद्यालयों की गैस्ट फैकल्टी के साथ साहित्य, मीडिया और स्त्री-विमर्ष का प्राध्यापन पता ः डी-38, प्रेस एनक्लेव, नई दिल्ली-110017 फोन: 26861053, मो. 9810093217 म्.उंपस रू ांउंसगल्र/ीवजउंपसण्बवउ प्रकाषित कृतियां, कहानी, उपन्यास, कविता, आलोचना, स्त्री-विमर्ष पर 30 पुस्तकें कहानी-संग्रह ः पहचान, क्रमषः, फिर वहीं से शुरू, वैलनटाईन-डे, घर-बेघर, अन्तर्यात्रा, यादगारी कहानियां, प्रेम संबंधों की कहानियां उपन्यास ःअपार्थ, आवर्तन, हैमबरगर, यह खबर नहीं, मैं घूमर नाचूं, पासवर्ड कविता-सग्रह ःबयान, गवाह, साक्षी हैं हम, सूर्य देता है मंत्र, घर और औरत आलोचना और स्त्री-विमर्ष ः नई कविता की परंपरा और भूमिका, अज्ञेय की काव्य संवेदना, शमषेर का काव्य, शांतिप्रिय द्विवेदी, व्यक्तित्व और कृतित्व,, नारीमुक्ति की पुरोधा, स्त्री संषब्द, विवेक और विभ्रम, स्त्रीः कथा-अंतर्कथा अनुवाद ः उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, कहानियां, कविताएं: अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी, मलयालम में अनुदित और प्रकाषित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन ः सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों पर सौ से भी अधिक लेख विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाषित। .....2/-2 अंतर्राष्ट्रीय विष्वविद्यालयों और ः कैथेलिक यूनीवर्सिटी (बेल्जियम), सैस्मो, टुरैनो (इटली), काफ्रेंस में पत्र-प्रस्तुति बीजिंग (चीन), बेबीलोन (बगदाद), जार्जिया, अटलांटा(अमेरिका), माॅरिषस, इस्लामाबाद, लाहौर (पाकिस्तान), त्रिनिडाड, लंदन, बरमिंघम, मैनचेस्टर (यू.के.)। आकाशवाणी-दूरदर्षन ः ‘हैमबरगर’ उपन्यास पर रेडियो धारावाहिक। समय बोध कहानी पर फिल्म, जंगल कहानी पर प्रसार भारतीय द्वारा फिल्म। रचनाकार के रूप में प्रसार भारती द्वारा मुझ पर फिल्म। पुरस्कार और सम्मान ः साहित्यकार सम्मान: हिंदी अकादमी(दिल्ली), साहित्य भूषण: उत्तर प्रदेष हिंदी संस्थान, साधना श्रेष्ठ सम्मान: मध्य प्रदेष, साहित्य श्रेष्ठ सम्मान: बिहार, साहित्यकार सम्मान: बुद्धिजीवी और संस्कृति समिति, उत्तर प्रदेष, साहित्य भारती सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग), रचनाकार सम्मान: प्रवासी भारतीय साहित्य और ‘घर और औरत’ शृंखला की कविताओं पर संस्कृति सभा ‘अस्मिता’, जार्जिया, अटलांटा (अमेरिका), गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय पुरस्कार: साहित्य अकादमी और संस्कृति परिषद, मध्य प्रदेष (घर-बेघर’ कहानी-संग्रह पर), ‘हरियाणा गौरव’, हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    मनमोहन कौशिक
    09 अगस्त 2017
    समस्याएं हैं तो इनके हल भी हैं,मुट्ठी भर स्वार्थी लोग एक जुट हैं,किंतु शेष लोग संख्या में अधिक होते हुए भी हर स्तर पर पिट रहे हैं,इसलिए कि वे उनके खिलाफ एक जुट नही हैं, समाज को एक जुट और जाग्रत समाज बनाने के सतत निस्वार्थ प्रयास करने होंगे।जाति धर्म क्षेत्र भाषा गरीब पिछड़ों में बंटा हुआ निर्बल समाज ही तो उनकी शक्ति है वे उसे अपनी सत्ता के लिए कभी क्यों होने देंगे।व्यस्था से निराश लेखक जति वादी सोच के साथ दोषारोपण कर शांत हो गया।उसकी यह सोच इसे एक कमज़ोर कहानी बनाती है।
  • author
    Sudha Ramavat
    08 नवम्बर 2017
    अगर कोई वजनदार और ईमानदार ,राष्ट्वादी इस कहानी को सही जगह पहुचाने का कम कर दे ,तो बड़ा अच्छा हो।
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    मनमोहन कौशिक
    09 अगस्त 2017
    समस्याएं हैं तो इनके हल भी हैं,मुट्ठी भर स्वार्थी लोग एक जुट हैं,किंतु शेष लोग संख्या में अधिक होते हुए भी हर स्तर पर पिट रहे हैं,इसलिए कि वे उनके खिलाफ एक जुट नही हैं, समाज को एक जुट और जाग्रत समाज बनाने के सतत निस्वार्थ प्रयास करने होंगे।जाति धर्म क्षेत्र भाषा गरीब पिछड़ों में बंटा हुआ निर्बल समाज ही तो उनकी शक्ति है वे उसे अपनी सत्ता के लिए कभी क्यों होने देंगे।व्यस्था से निराश लेखक जति वादी सोच के साथ दोषारोपण कर शांत हो गया।उसकी यह सोच इसे एक कमज़ोर कहानी बनाती है।
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    Sudha Ramavat
    08 नवम्बर 2017
    अगर कोई वजनदार और ईमानदार ,राष्ट्वादी इस कहानी को सही जगह पहुचाने का कम कर दे ,तो बड़ा अच्छा हो।