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प्रेम

4.0
836

मैं थरथराते हाथों से लिखती हूँ प्रेम और कुछ जलती हुई आँखें मुझे घेर लेती हैं कुछ तलवारें म्यानों से बाहर आकर चमकने लगती हैं घबडाकर मैं मिटाना चाहती हूँ ‘प्रेम ‘ का हरेक हर्फ़ और प्रेम ढीठता से ...

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लेखक के बारे में

शिक्षा – एम्.ए. ( हिन्दी ) सम्प्रति – कंटेंट एडिटर, प्रतिलिपि कॉमिक्स प्रकाशित पुस्तकें – तिराहा,बेगम हज़रत महल (उपन्यास ) अनतर्मन के द्वीप, पॉर्न स्टार और अन्य कहानियां – कहानी संग्रह कई कवितायें ,कहानियाँ एवं लेख पत्र - पत्रिकाओं और कई ब्लॉग्स पर प्रकाशित।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kalyani Jha "Kalyani"
    15 মার্চ 2019
    बहुत सुंदर
  • author
    Anup Kumar
    14 ডিসেম্বর 2022
    वीणा वत्सल जी की कविता"प्रेम"कवियत्री ने प्रति म की जो व्याख्या की है वह काबिलेतारीफ है.सचमुच प्रेम एक ऐसा अस्त्र है जिससे दुनिया की हर मुसीबतों को हरने की क्षमता रखती है बशर्ते उसे किस तरह इसका ,प्रयोग किया जाय इस पर निर्भर करती है.
  • author
    Jyoti Mahajan
    11 জুলাই 2021
    प्रेम का जो रूप अपनी कल्पना के माध्यम से आपने लेखनी के रूप में उकेरा .....बहुत ही सुंदर
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    Kalyani Jha "Kalyani"
    15 মার্চ 2019
    बहुत सुंदर
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    Anup Kumar
    14 ডিসেম্বর 2022
    वीणा वत्सल जी की कविता"प्रेम"कवियत्री ने प्रति म की जो व्याख्या की है वह काबिलेतारीफ है.सचमुच प्रेम एक ऐसा अस्त्र है जिससे दुनिया की हर मुसीबतों को हरने की क्षमता रखती है बशर्ते उसे किस तरह इसका ,प्रयोग किया जाय इस पर निर्भर करती है.
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    Jyoti Mahajan
    11 জুলাই 2021
    प्रेम का जो रूप अपनी कल्पना के माध्यम से आपने लेखनी के रूप में उकेरा .....बहुत ही सुंदर