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निर्मला

4.6
532795

चलेगा क्या? पूरी रात मज़ा लेना है तो चल मेरे साथ कहकर अपना पल्लू गिराती निर्मला की आंखे पूरी सड़क का सबसे माल दार असामी को ढूंढ रहीं थी । लाल साड़ी ,लाल लिपिस्टिक, लाल बिंदी में निर्मला बिल्कुल गुलाब ...

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लेखक के बारे में

मेरा परिचय नाम :- स्वधा रवींद्र "उत्कर्षिता" माता:- श्रीमती उमा पाण्डेय पिता:- श्री सुधीर कुमार पाण्डेय पति:- श्री रवींद्र कुमार अमात्य पता:- 5/937, विराम खंड गोमती नगर, लखनऊ, 226010 मोबाइल:- 7860099770, 74083 55699 व्यावसायिक परिचय: वास्तुविद(आर्किटेक्ट), शिक्षक शिक्षा : बी.एड, एम.एड, एम.ए राजनीति शास्त्र ,समाज शास्त्र, इतिहास, शिक्षा शास्त्र। विधाएं:- गीत, गज़ल, दोहे, मुक्तक, छंद, लयबद्ध कविताएं, छंदमुक्त कविताएं, लघु कथाएं, कहानियां,संस्मरण। सम्मान:- आदिशक्ति ब्रिगेड की उत्तरप्रदेश की अध्यक्ष, महादेवी वर्मा सम्मान । साहित्यिक परिचय: वो ताजमहल हूँ मैं जो पत्थर का नही है जिसमे है बहता रक्त लाल  श्वेत नही है चाहो तो कहीं से भी हमे तोड़ के देखो दिल ही मिलेगा साथ मे पाषाण नहीं है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pushpa Panchal
    05 जुलाई 2019
    मन को छू लिया,,.. काश पारस जैसे पुरष हर समय की मारी निर्मला को मिल सके,, बेटियों का बाजार सजाकर पुरुष अपनी,, जननी का ही अपमान करता है।
  • author
    शिल्पी रस्तोगी
    08 जनवरी 2019
    शब्द ही नहीं है कुछ कहने के लिए , पुरूष का नया ही रूप देखने को मिला है ..
  • author
    Rita Islam
    08 जनवरी 2019
    आपने तो रुला ही दिया। बहुत ही बेहतरीन कहानी। काश समाज में वास्तव में ऐसा हो सकता। आमीन !!!!
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    Pushpa Panchal
    05 जुलाई 2019
    मन को छू लिया,,.. काश पारस जैसे पुरष हर समय की मारी निर्मला को मिल सके,, बेटियों का बाजार सजाकर पुरुष अपनी,, जननी का ही अपमान करता है।
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    शिल्पी रस्तोगी
    08 जनवरी 2019
    शब्द ही नहीं है कुछ कहने के लिए , पुरूष का नया ही रूप देखने को मिला है ..
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    Rita Islam
    08 जनवरी 2019
    आपने तो रुला ही दिया। बहुत ही बेहतरीन कहानी। काश समाज में वास्तव में ऐसा हो सकता। आमीन !!!!