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नकाब

4.0
506

असलियत से कोसों दूर तुम छिपे थे नकाबों मे , प्यार की भूखी मै नहीं पहचान पायी तुम्हारी फितरत , जब भी लगा तुम्हारा व्यव्हार अजीब तो खुद को ही दोष देती रही , पर कभी दोस्ती तो कभी प्यार का नकाब लगाये उस ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    17 अक्टूबर 2015
    नकाब, असलियत , फितरत व अजीब जैसे शब्द राष्ट्र भाषा सम्मान व पकड़ को अच्छे रूप में दर्शा रहे है । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता ।
  • author
    Kamlesh Khan Singh Disuja
    15 अक्टूबर 2015
    रेवा जी...सच और झूठ के पर्दों से रूबरू करवाती बहुत ही सुंदर रचना।
  • author
    Pawan Arora
    16 अक्टूबर 2015
    लाजवाब बहुत खूब रेवा जी
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  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    17 अक्टूबर 2015
    नकाब, असलियत , फितरत व अजीब जैसे शब्द राष्ट्र भाषा सम्मान व पकड़ को अच्छे रूप में दर्शा रहे है । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता ।
  • author
    Kamlesh Khan Singh Disuja
    15 अक्टूबर 2015
    रेवा जी...सच और झूठ के पर्दों से रूबरू करवाती बहुत ही सुंदर रचना।
  • author
    Pawan Arora
    16 अक्टूबर 2015
    लाजवाब बहुत खूब रेवा जी