pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

मैनेजर साहिबा

4.5
33052

हर रोज़ की तरह आज भी बडबडाते हुऐ पंकज घर से बाहर आ गया और हर रोज़ की तरह आज भी पूजा घर के भीतर बस यही सोचती रह गयी कि तन-मन से स्वंय को अर्पण कर के भी उसे क्या मिला पंकज से? कटाक्ष "मैनेजर साहिबा", ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
दिशा अग्रवाल

सच्चाई को छूती हुई काल्पनिक कहानियां लिखकर अपने पाठकों का मनोरंजन करने के अतिरिक्त समाज में बदलाव लाने की एक छोटी सी कोशिश

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    कुसुम पारीक
    04 मार्च 2017
    भारतीय पुरुष का ईगो एक घटना से ही हमेशा के लिए समाप्त हो जाये ऐसा नही हो सकता।
  • author
    Mala Arya "राजमाला"
    24 मार्च 2019
    नारी को ना जाने कितनी प्रताड़नाओ से गुजरना पड़ता है,, पुजा ने तानों को चुनौती समझकर स्वीकार किया,, इसीलिए वो सफल हो अपने पति ओर परिवार को पश्चाताप के लिए मजबूर कर गयी,, वर्ना ज्यादातर तो इन हालतो मे हार मानकर डिप्रेशन मे चले जाते है,, बहुत प्रेरक कहानी ✍️
  • author
    monica lal
    28 अगस्त 2021
    प्रेरक प्रसंग..हालांकि पूजा के मैनेजर बनने पर पंकज का व्यवहार बदलना थोड़ा अटपटा लगा क्योंकि अब तो उसके अहम को और भी चोट पहुंची...वर्तनी की अशुद्धियों पर कृपया ध्यान दें
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    कुसुम पारीक
    04 मार्च 2017
    भारतीय पुरुष का ईगो एक घटना से ही हमेशा के लिए समाप्त हो जाये ऐसा नही हो सकता।
  • author
    Mala Arya "राजमाला"
    24 मार्च 2019
    नारी को ना जाने कितनी प्रताड़नाओ से गुजरना पड़ता है,, पुजा ने तानों को चुनौती समझकर स्वीकार किया,, इसीलिए वो सफल हो अपने पति ओर परिवार को पश्चाताप के लिए मजबूर कर गयी,, वर्ना ज्यादातर तो इन हालतो मे हार मानकर डिप्रेशन मे चले जाते है,, बहुत प्रेरक कहानी ✍️
  • author
    monica lal
    28 अगस्त 2021
    प्रेरक प्रसंग..हालांकि पूजा के मैनेजर बनने पर पंकज का व्यवहार बदलना थोड़ा अटपटा लगा क्योंकि अब तो उसके अहम को और भी चोट पहुंची...वर्तनी की अशुद्धियों पर कृपया ध्यान दें