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मैं इश्क़ लिखूं, तुम बनारस समझना !

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मैं चाय लिखूं, तुम फुटपाथ (लंका) समझना ! मैं अड्डा लिखूं, तुम भीटी समझना ! मैं जीवन लिखूं, तुम मणिकर्णिका, हरिश्चन्द्र समझना ! मैं सुकून लिखूं, तुम गंगा किनारे समझना ! मैं नाव लिखूं, तुम मल्लाह ...

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लेखक के बारे में

बनारस मेरा इश्क, यहां का जर्रा जर्रा मेरे धड़कन में !

समीक्षा